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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास देलवाड़ा (मेवाड़) १९७६ नान्देशमा (मेवाड़) १९८२, २००२,२००७, खंडप (मारवाड़) १९८७, १९९७ पीपाड़ (मारवाड़) १९८९, २००० दुन्दाड़ा (मारवाड़) १९९० ब्यावर (राजपूताना) १९९१ लीम्बड़ी (गुजरात) १९९२ नासिक (महाराष्ट्र) १९९३, २००४ मनमाड (महाराष्ट्र) १९९४ कम्बोल (मेवाड़) १९९५ रायपुर (मारवाड़) १९९९ धार (मध्य प्रदेश) २००३ घाटकोपर (बम्बई) २००५ चूड़ा (सौराष्ट्र)
२००६ जयपुर (राजस्थान) २०१०, २०१२,२०१३, दिल्ली (राजस्थान) २०११ उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी.
आपका जन्म वि० सं० १९६७ आश्विन शुक्ला चतुर्दशी को मेवाड़ में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री सूरजमलजी तथा माता का नाम बालीबाई था। आप जाति से ब्राह्मण थे। आपके बाल्यकाल का नाम श्री अम्बालाल था। साध्वीप्रमुखा महासती श्री धुलकुँवरजी की प्रेरणा से आप गुरुवर्य श्री ताराचन्दजी के सानिध्य में आये । गुरुवर्य श्री ताराचन्दजी के सानिध्य में बारह महीने तक शास्त्रों का अध्ययन किया। तत्पश्चात् वि०सं० १९८१ ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन जालौर में आपने आहती दीक्षा ग्रहण की। आपके साथ बालक रामलाल ने भी दीक्षा ग्रहण की थी। दीक्षोपरान्त बालक रामलाल का नाम मुनि प्रतापमलजी रखा गया और वे पं० श्री नारायणचन्दजी के शिष्य घोषित हुये । आप मुनि श्री ताराचन्दजी के शिष्यत्व में श्री पष्करमनिजी के नाम से विख्यात हुये। श्रामण्य दीक्षा के पश्चात् आपने अपने संयमजीवन के तीन लक्ष्य बनाये- संयम-साधना, ज्ञान-साधना और गुरु-सेवा। आपने शास्त्रों का गहन एवं तलस्पर्शी अध्ययन किया। अध्ययन अध्यापन लेखन आदि में आपकी विशेष रुचि थी। कम बोलना और कार्य अधिक करना आपके जीवन का सिद्धान्त था। सन् १९४८ में बम्बई के घाटकोपर चातुर्मास में उपाध्याय प्यारचन्दजी, श्री मोहनऋषिजी, शतावधानी श्री पूनमचन्दजी और साध्वी उज्ज्वल कुमारीजी के समक्ष आपने एक पंचसूत्री योजना प्रस्तुत की
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