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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास . युक्त होने के कारण धर्म या मोक्षमार्ग नहीं हो सकतीं। उन्होंने इस चर्चा में लौकिक धर्म और लोकोत्तर धर्म की चर्चा भी उठाई है और यह भी कहा है कि सूर्याभदेव अथवा द्रौपदी के द्वारा उल्लेखित जिन-प्रतिमा की पूजा एक लोक-व्यवहार है न कि धर्ममार्ग। इस समग्र विश्लेषण से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि लोकाशाह ने जिन-प्रतिमा, जिन-प्रतिमानिर्माण, पूजन, जिन-भवन-निर्माण और जिन-यात्रा की हिंसा से जुड़ी हुई प्रवृत्तियों को धर्मविरुद्ध बताने का प्रयास किया है। लोकाशाह की इन मान्यताओं का समर्थन उनके समकालीन विरोधियों के द्वारा लिखे गये ग्रन्थों से भी होता है। कुछ लोगों ने यह प्रश्न उठाया है कि यदि लोकाशाह ने जिन-प्रतिमा-पूजन आदि का विरोध किया तो फिर आगे चलकर लोकाशाह के गच्छ में ये प्रवृत्तियाँ कैसे प्रवेश कर गयीं। मेरी दृष्टि में इसका स्पष्ट कारण यह है कि जब लोकागच्छ से क्रियोद्धार करके स्थानवासी परम्परा का निर्माण करनेवाले जीवराजजी, लवजीऋषि, धर्मसिंहजी, धर्मदासजी आदि अलग हो गये और उनके साथ मूर्तिपूजा विरोधी समाज भी जड़ गया जिससे लोकागच्छ के यतियों के सामने अपनी आजीविका का प्रश्न खड़ा हो गया । फलत: उन्होंने अन्य गच्छों की यति परम्परा के समान ही आचरण स्वीकार कर लिया और इस प्रकार वे पुन: मूर्तिपूजक समाज के साथ जुड़ गये।
संदर्भ
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१. सई उगणीस वरस थया, पणयालीस प्रसिद्ध ।
त्यारे पछी लूंको हुई, असमंजस तिणई किद्ध ॥३॥
लावण्यसमय कृत सिद्धान्त चौपाई, उद्धृत-जैनधर्म का मौलिक इतिहास,भाग-४, पृ०-७०३ २. वीर जिनेसर मुक्ति गया,सइ ओगणीस वरस जब थया। पणयालीस अधिक भाजनइ, प्रागवाट पहिलइ सा जनइ ॥
मुनिश्री बीकाजी कृत असूत्रनिराकरण बत्तीसी चौदस व्यासी वइसाखई, वद चौदस नाम लुंको राखई ।
यति भानुचन्द्रकृत दयाधर्म चौपाई। आ महात्मा नुं जन्म अरहटवाडा ना ओसवाल गृहस्थ चौधरी अटक ना सेठ हेमाभाई नी पतिव्रत परायणा भार्या गंगाबाई नी कुक्षी नो हता । सम्वत् १४८२ ना कार्तिक शुद पूनम ने दिवसे (जन्म) थयो।
लोकाशाह नुं जीवन प्रभुवीर पट्टावली पृ०-१६१ । पूनम गच्छइ गुरु सेवन थी, शैयद ना आशिष वचन थी। पुत्र सगुण थयो लखु हरीष, शत चउद सत सत्तर वर्षि। यति केशव जी कृत चौबीस कड़ी के सिल्लोके । जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ, पृ०-५५७ जैन धर्म का इतिहास, पृ०-२७२
वही, पृ०-२७२ ९. वही, पृ०-२७६ १०. आ महात्मा नुं जन्म अरहट वाडा न ओसवाल गृहस्थ चौधरी अटक ना सेठ हेमाभाई नी
पतिव्रत परायणा भार्या गंगाबाई नी कुक्षी नो हतो। लोकाशाह मुंजीवन प्रभुवीर पट्टावली, पृ०-१६१ ११. सोरठ देश लीमडी ग्रामे, दशा श्रीमाली ईंगर नाम इ॥३॥ दयाधर्म चौपाई
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