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जोधपुर
जोधपुर
जोधपुर
आचार्य जीवराजजी और उनकी परम्परा वि०सं० स्थान
वि० सं० स्थान १८९५ अजमेर
१९०४
जोधपुर १८९६ जोधपुर
१९०५ १८९७ पाली
१९०६ पाली १८९८ जोधपुर
१९०७
जोधपुर १८९९ जोधपुर
१९०८ जोधपुर १९०० जोधपुर १९०९
चौपासनी १९०१ अजमेर
१९१० १९०२ अजमेर
१९११
जोधपुर १९०३ जोधपुर
१९१२ आचार्य श्री ज्ञानमलजी
आचार्य श्री अमरसिंहजी की परम्परा में पाँचवें पाट पर मुनि श्री ज्ञानमलजी आसीन हुए। आपका जन्म राजस्थान के सेतरावा गाँव में वि० सं० १८६० पौष कृष्णा षष्ठी दिन मंगलवार को ओसवाल वंशीय जोरावरमलजी गोलेछा के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती मानदेवी था। आपके पुण्य कर्मों के उदय से वि०सं० १८६९ में आचार्य श्री जीतमलजी अपने शिष्यों के साथ सेतरावा पधारे। आचार्य श्री के पावन उपदेशामृत से आपके मन में वैराग्य भावना जाग्रत हुई और आपने सांसारिक सुखों का प्रलोभन छोड़कर वि०सं० १८६९ पौष कृष्णा तृतीया (तीज) दिन बुधवार को जोधपुर के झाला मण्डप में आचार्य श्री जीतमलजी के सान्निध्य में संयममार्ग को अंगीकार किया। आप एक तेजस्वी सन्त थे । आप हृदय से जितने कोमल और उदार थे, उतने ही अनुशासन प्रिय भी थे। आपने आचार्य श्री जीतमलजी के सानिध्य में आगम ग्रन्थों का अध्ययन किया। वि०सं० १९१३ में आचार्य श्री जीतमलजी के स्वर्गवास के पश्चात आप संघ के आचार्य बनाये गये। १७ वर्ष तक आप आचार्य पट्ट पर रहे। जालोर में वि०सं० १९३० का पर्युषण पर्व सम्पन्न हो गया था। प्रात:काल आपने चातुर्मास संघ से क्षमायाचना की और स्वयं पट्ट पर पद्मासन में बैठकर भक्तामर स्तोत्र का पाठ किया और अन्त में अरिहन्ते सरणं पवज्जामि, सिद्धे शरणं पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवलि पण्णत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि का पाठ करते हुए स्वर्गस्थ हो गये। आचार्य श्री पूनमचन्दजी
पूज्य आचार्य ज्ञानमल के स्वर्गस्थ हो जाने के बाद श्री अमरसिंहजी की परम्परा में छठे पट्टधर के रूप में मुनि श्री पूनमचन्दजी पट्ट पर समासीन हुए। आपका जन्म राजस्थान के जालोर में श्री ओमजी के यहाँ वि०सं० १८९२ मार्गशीर्ष शक्ला नवमी दिन शनिवार को हुआ था। आपकी माता का नाम श्रीमती फूलादेवी था। आप जाति
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