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आचार्य जीवराजजी और उनकी परम्परा आपकी शिष्य परम्परा बहुत लम्बी है लेकिन जिनलोगों के विषय में जानकारी मिलती है उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैआपके दो मुख्य शिष्य हुए थे- मुनि श्री किशनचन्दजी और मुनि श्री ज्ञानमलजी।
मुनि श्री किशनचन्दजी- आपका जन्म अजमेर जिले के मनोहर नामक गाँव में वि० सं० १८४५ में श्री प्यारेलालजी के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती सुशीला देवी था। आपकी दीक्षा वि० सं० १८५३में हुई और स्वर्गवास वि०सं० १९०८ में हुआ। मुनि श्री हुक्मीचन्दजी आपके प्रमुख शिष्य थे ।
मुनि मुनि हुक्मीचन्दजी - वि०सं० १८८२ में आपका जन्म जोधपुर निवासी स्वर्णकार श्री नथमलजी के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती रानीबाई था। आपकी दीक्षा वि०सं० १८९८. में हुई। आपका स्वर्गवास वि० सं० १९४० भाद्र कृष्णा द्वितीया को हुआ। आप किशनचन्दजी के शिष्य थे।
मुनि श्री रामकिशनजी - आप मुनि श्री हुक्मीचन्दजी के शिष्य थे। आपका जन्म जोधपुर निवासी श्री गंगारामजी के यहाँ वि०सं० १९११ भाद्र कृष्णा चतुर्दशी को हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती कुन्दनकुँवर था। दीक्षा लेने से पूर्व आपका नाम मिट्ठालाल था। वि० सं० १९२५ पौष कृष्णा एकादशी को बड़े ग्राम में आपकी दीक्षा हुई। वि०सं० १९६० ज्येष्ठ वदि चतुर्दशी को जोधपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। - मुनि श्री नारायणचन्दजी - आप मुनि श्री रामकिशनजी के शिष्य थे। आपका जन्म बाड़मेर जिले के सणदरी ग्राम में वि०सं० १९५२ पौष कृष्णा चतुर्दशी को हुआ। ५ वर्ष की अवस्था में आपके पिताजी का देहान्त हो गया । वि० सं० १९६७ माघ पूर्णिमा को आपकी दीक्षा हुई। आपके साथ आपकी माता श्रीमती रागाजी ने भी दीक्षा ली थी। आचार्य श्री ज्येष्ठमलजी ने आपको मुनि श्री रामकिशनजी का शिष्य घोषित किया था। आपका स्वर्गवास वि०सं० २०११ आश्विन कृष्णा पंचमी तदनुसार १८ सितम्बर १९५४ को दुदार ग्राम में हुआ। आपके दो शिष्य हुए मुनि श्री मुलतानमलजी और मुनि श्री प्रतापमलजी। मुलतानमलजी का जन्म वि०सं० १९५७ को बाड़मेर जिले के वागावास निवासी श्री दानमलजी के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती नैनीबाई था। आपकी दीक्षा वि० सं० १९७० को समदड़ी में हुई। वि०सं० १९७५ में आपका स्वर्गवास हुआ। मुनि श्री नारायणदासजी के द्वितीय शिष्य प्रतापमलजी थे जिनके बचपन का नाम श्री रामलाल था। जन्म वि०सं० १९६७ में हुआ। वि०सं० १९८१ ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को जालोर में उपाध्याय पुष्करमुनिजी के सानिध्य में आप दीक्षित हुए। मुनि श्री नारायणचन्दजी के स्वर्गवास के चार महीने बाद प्रतापमलजी का भी स्वर्गवास हो गया।
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