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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास ४८. पर्युषणपर्व में वज्रकृष्ण (वैरकन्नै) तपं करवाना किसकी परम्परा है? ४९. झडूले करवाना (बाल उतरवाना) किसकी परम्परा है ? ५०. सिद्धचक्र के आयम्बिल की बोली करवाना किसकी परम्परा है ? ५१. मुनि के स्वर्गवास होने पर उसका उठावना करवाना किसकी परम्परा है? ५२. प्रतिमा को झूले में झूलाना किसकी परम्परा है? ५३. मनियों के पैरों के सामने गवली (उंबणी) करते हैं। ये किसकी परम्परा है?
५४. पर्युषण पर्व में चतुर्थी को संवत्सरी प्रतिक्रमण करना किसकी परम्परा है? चौतीस बोल (मान्यतायें)
लोकाशाह के द्वारा जो चौतीस बोल अर्थात् मान्यतायें स्थापित की गयी थीं वे निम्नलिखित हैं
१. निशीथचूर्णि' का उद्धरण देते हुए लोकाशाह लिखते हैं कि एक आचार्य विभिन्न क्षेत्रों में विचरण करते हुए एक अटवी में पहुँचे, जहाँ पर अनेक प्रकार के हिंसक पशुओं का बाहुल्य था । उस अटवी में उन्हें अपने शिष्य-समूह के साथ रात्रिवास के लिए रुकना पड़ा। हिंसक पशुओं के बाहुल्य को देखकर उन्होंने कहा कि गच्छ की रक्षा के लिए स्वापद आदि का निवारण करना पड़ेगा। उस समय एक साधु ने पूछा कि यह निवारण किस प्रकार करें? आचार्य ने प्रत्युत्तर में कहा कि पहले तो उसका निवारण इस प्रकार करना चाहिए कि उससे उसकी हिंसा न हो, परन्तु यदि यह सम्भव नहीं हो तो उनकी हिंसा में भी कोई दोष नहीं है । तत्पश्चात् उस शिष्य ने रात्रि में तीन सिंहों को मार दिया उसके बाद गुरु के पास जाकर प्रायश्चित्त के लिए पूछा तो गुरु ने कहा तू शुद्ध है । अत: आचार्य आदि की रक्षा हेतु हिंसा करनेवाला शुद्ध होता है । यह कथा 'निशीथचूर्णि' में प्राप्त होती है। इस सम्बन्ध में लोकाशाह का कहना है कि यदि हम नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि
और टीकाओं को स्वीकार करेंगे तो हमें इस प्रकार की हिंसा को भी आगम सम्मत मानना होगा । जब आगम में त्रिविध-त्रिविध रूप से हिंसा का यावत्जीवन त्याग किया गया है तो फिर इस प्रकार की हिंसा को मान्य कैसे किया जा सकता है? विज्ञजन विचार करें।
२. इसी प्रकार नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि में प्रसंगवश झूठ बोलनेवाले, चोरी करनेवाले आदि को शुद्ध बताया गया है। वशीकरण मन्त्र, चूर्ण आदि के द्वारा वस्तुओं को प्राप्त करनेवाले व ताला खोलकर अदत्त औषधि आदि लेनेवाले को यदि हम शुद्ध मानेंगे तो फिर साधु के पंचमहाव्रत कहाँ रहेंगे ?
३. यदि सकारण हिरण्य, स्वर्ण आदि ग्रहण करना मान्य करते हैं, तो साधु का अपरिग्रह महाव्रत कैसे रहेगा ? ___४. नियुक्ति आदि में हिरण्य, स्वर्ण आदि देकर दुर्लभ वस्तुएँ लेने के लिए भी
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