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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास १६. आगम में सचित्त फूल-फल का निषेध किया गया है, जबकि चूर्णि के अन्दर सचित्त फूल सूंघने का समर्थन किया गया है । इस विरोध का समाधान कैसे होगा?
१७. आगम में षट्जीवनिकाय की विराधना का निषेध किया गया है जबकि चूर्णि में उसका समर्थन किया गया है । इस विरोध का परिहार कैसे होगा ?
१८. चूर्णि आदि में दुष्काल के समय अदत्त आहार लेने का उल्लेख है जबकि आगम स्पष्ट रूप से इसका निषेध करता है । बुद्धिमान जन इस पर विचार करें।
१९. आगम में स्पष्ट रूप से स्नान आदि का निषेध किया गया है । चूर्णि में इसका समर्थन किया गया है ।
२०. आगम में मुनि के लिए चारित्राराधन काल में जूते पहनने का निषेध किया गया है, जबकि चूर्णि आदि में इसका समर्थन देखा जाता है । ऐसा क्यों? विचार करें?
२१. 'निशीथ' के चतुर्थ उद्देशक में अखण्ड अनाज के दाने लेने का निषेध किया गया है जबकि उसी की चूर्णि में वैद्य के उपदेश से अपवाद मार्ग में अखण्ड सचित्त दाने आदि ग्लान व्यक्ति को लेना बताया गया है । इन परम्परा विरोधी विचारों का समन्वय कैसे हो?
२२. निशीथ' के पंचम उद्देशक में अनन्तकाय के सेवन का निषेध किया गया है जबकि उसी की चर्णि में श्रावक के भय निवारणार्थ अथवा श्वान आदि के प्रतिरोध के लिए विवशता में अनन्तकाय का डन्डा आदि लेने का भी उल्लेख किया गया है। यह परस्पर विरोधी है।
२३. 'निशीथचूर्णि' में षष्ठ उद्देशक के अन्दर मुनि के लिए मैथुन का सर्वथा निषेध किया गया है जबकि उसी की चूर्णि में कहा गया है कि साधु को मैथुन इच्छा का उदय हआ हो,यदि उसका उपशम न हो रहा हो तो आचार्य के प्रति उसे कहना चाहिए । यदि आचार्य के प्रति नहीं कहता है तो उसको चतुर्गुरु प्रायश्चित्त आता है । यदि कहने के बाद आचार्य उसकी चिन्ता नहीं करते हैं तो उन्हें भी चतर्गरु प्रायश्चित्त आता है । इस प्रकार 'मोहिनी' (कामवासना) का उदय होने पर निवी आदि तप कराये जाते हैं । यदि ऐसा कराते हुये भी उसकी कामवासना की उत्तेजना शान्त नहीं होती है तो भक्त भोगी स्थविर उसे अपने साथ वेश्याओं के मोहल्ले में ले जाकर शब्द आदि सुनवाये। ऐसा करने पर भी वासना शान्त न हो तो आलिंगन आदि के द्वारा शान्त करावें। यदि इतने पर भी शान्त न हो तो तिर्यंचनी आदि के समीप ले जाकर उसकी वासना शान्त करावें । यदि वहाँ भी शान्त न हो तो मृत मनुष्यनी आदि के संघात से तीन बार उसकी वासना शान्त करावें। ऐसा करते हुये भी उसकी वासना शान्त न हो तो उपयुक्त स्थविर उसे अन्य बस्ती में ले जाकर अंधेरे में किट्टी साधिका के साथ मिलाप करावें ।
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