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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास अन्य प्रतिमा उसके पक्ष में बैठती है । मूलनायक की प्रतिमा उच्च आसन पर बैठती है और अन्य प्रतिमा नीचे आसन पर । यदि सभी तीर्थङ्कर समान हैं तो फिर इस प्रकार का भेदभाव क्यों ?
३२. तीर्थङ्कर का शरीर कम से कम सात हाथ और अधिक से अधिक ५०० धनुष का होता है । अत: उनकी प्रतिमा किस प्रमाण अर्थात् ऊँचाई की बनानी चाहिए। आगम में इस सम्बन्ध में क्या कहा गया है?
३३. अप्रतिष्ठित प्रतिमा को पूजने से क्या होता है और प्रतिष्ठित प्रतिमा को पूजने से क्या होता है? क्या प्रतिष्ठित प्रतिमा में ज्ञान का, दर्शन का, चारित्र का और तप का कोई गुण रहता है? पूजनीय तो गुण कहे गये हैं। प्रतिमा की प्रतिष्ठा करने पर क्या उसमें कोई गुण आ जाता है ? वह भी वैसी ही दिखाई देती है, जैसी अप्रतिष्ठित प्रतिमा।
३४. प्रतिमा के सम्मुख चढ़ाये हुए धान्य, फूल, वस्त्र, सोना, चाँदी, पकवान आदि माली को देना चाहिए या नहीं देना चाहिए? जो द्रव्य है उसका क्या करना चाहिए? ब्याज से लगाना चाहिए या व्यवसाय में लगाना चाहिए । क्या करके उसकी वृद्धि करनी चाहिए? क्या आगम में ऐसा कोई उल्लेख है? ।
३५. (प्रतिमा की प्रतिष्ठा के समय) अष्टोत्तरी विधि, आरती, मंगलदीप, परिहारमणि (पेरावनी), सचित्त नमक को अग्नि में डालना आदि- ये सब विधियाँ किस आगम ग्रन्थ में कहीं गयी हैं? आगम का प्रमाण दिखाईये? आगम में श्रावक द्वारा ११ (ग्यारह) प्रतिमाओं (व्रत-नियमों) की आराधना करणीय कही गयी है। वहाँ कहीं भी पूजा करने का कोई उल्लेख नहीं है। पहले प्रतिमा की त्रिकाल पूजा करवायी जाती थी? यह किस आगम ग्रन्थ में कहा गया है बताईये?
३६. भगवान् महावीर ने आगमों में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका आदि चतुर्विध तीर्थ का उल्लेख किया है। अन्य दर्शनों के तीर्थ के रूप में आगमों में मागध तीर्थ, वरदाम तीर्थ और प्रभास तीर्थ का उल्लेख हुआ है। आगमों में कहीं भी शत्रुजय, गिरनार, आबू, अष्टापद, जिरावल आदि को तीर्थ नहीं कहा गया है। इससे तो यह लगता है कि ये तीर्थ नहीं हो सकते।
३७. हवनीपर्व, लकड़ी, सूर्यकान्तमणि, कौड़ी और वारटक आदि की प्रतिष्ठा करके इन्हें आचार्य की स्थापना के रूप में माना जाता है। आचार्य के ३६ गुण होते हैं अथवा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के गण होते हैं। क्या इनमें से कोई एक भी गुण स्थापना में दिखाई देता है? जिस समय ये अप्रतिष्ठित होते हैं तब और प्रतिष्ठित होने के बाद भी वैसे ही होते हैं। स्थापना करने के बाद भी कोई विशेष गुण नहीं देखे जाते हैं। स्थापनाचार्य की स्थापना करके फिर उसके समक्ष वन्दन आदि किया जाता है। अन्य
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