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लोकाशाह और उनकी धर्मक्रान्ति
११५ कम २०वर्ष तो लगे ही होंगे । अत: हम यह कह सकते हैं कि लोकाशाह की जो क्रान्ति वि०सं० १५०९ में ही प्रारम्भ हो चुकी थी वह वि०सं० १५३१ में अपनी पूर्णता तक पहुँची । लोकाशाह की मान्यताओं के विरोध में एक अन्य कृति लावण्यसमय की 'सिद्धान्त चौपाई है जो वि०सं० १५४३ कार्तिक शुक्ला अष्टमी को रची गयी थी । इसकी मूल कृति बीकानेर के जयचन्द्रजी के भण्डार में उपलब्ध है । कमलसंयम उपाध्याय ने भी १५४४ में 'सिद्धान्तसारोद्धार' नामक ग्रन्थ में लोकाशाह के मत का खण्डन किया है। इसी प्रकार श्री बीकाजी के 'असूत्रनिराकरणबतीसी' एवं वि०सं० १६१७ ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा को कनकपुरी में हीरकलश विरचित 'कुमति विध्वंसण चौपाई' में भी लोकाशाह के मत का खण्डन मिलता है । दिगम्बर परम्परा के 'भद्रबाहचरित्र' में और भट्टारक सुमतिकीर्ति द्वारा कोकादानगर में वि०सं० १६२७ में रचित 'लुंकामत निराकरण' नामक कृति में लोकाशाह के मतों का खण्डन मिलता है । इनके अतिरिक्त धर्मसागर उपाध्याय द्वारा वि०सं० १६२९ में 'प्रवचन परीक्षा' एवं गणविजयवाचक द्वारा रचित 'लुंकामत निराकरण चौपाई' में भी लुंकामत का विस्तार से खण्डन किया गया है। इसी प्रकार ब्रह्मक विरचित जिन-प्रतिमा स्थापन (रचनाकाल वि० सं० १६०७) में भी लोकाशाह के मत का खण्डन हुआ है।
इन समस्त सूचनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि १६ वीं शती में लोकाशाह और उनकी मान्यताओं का जैन समाज में व्यापक प्रभाव स्थापित हो गया था । यहाँ इस विवाद में पड़ना आवश्यक नहीं है कि लोकाशाह और उनके विरोधियों के मत में कौन सत्य है और कौन असत्य है। किन्तु लोकाशाह की कृतियों और उनके विरोधियों द्वारा किये गये खण्डन से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि लोकाशाह की मूल मान्यताएं क्या थीं ? आगे हम उनकी प्रमुख मान्यताओं की चर्चा करेंगे। लोकाशाह की मान्यताएं एवं कृतियों
लोकाशाह की मान्यताओं के सम्बन्ध में चर्चा करने से पूर्व सर्वप्रथम उनके द्वारा प्रस्तुत तेरह प्रश्नों को समझ लेना होगा । ये तेरह प्रश्न निम्नलिखित हैं
१. यदि केवली, गणधर और साधु भी जब तक चारित्र को ग्रहण नहीं कर लेते हैं और षटकाय जीवों के आरम्भ से निवृत्त नहीं होते हैं तब तक वंदनीय नहीं होते, तो फिर अचेतन और षटजीवनिकाय के आरम्भ से निर्मित प्रतिमा वन्दनीय कैसे हो सकती है ?
२. तीर्थङ्कर, गणधर और साधु की भी हिंसक प्रवृत्ति अर्थात् आरम्भयुक्त भक्ति मान्य नहीं है, तो फिर अजीव प्रतिमा की आरम्भयुक्त भक्ति कैसे स्वीकार हो सकती
३. गुण वन्दनीय है या आकार (आकृति) वन्दनीय है । यदि गुण वन्दनीय
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