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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास
'नन्दीसूत्र' की जो परम्परा है वह अन्य परम्पराओं के भी कुछ नामों का उल्लेख करती हुई प्रतीत होती हैं, जैसे- 'नन्दीसूत्र' में ब्रह्मदीपक शाखा का उल्लेख है। इसी क्रम में वाचक वंश का उल्लेख भी इस स्थविरावली में मिल जाता है। फिर भी ये स्थविरावलियाँ महावीर के पश्चात् से लेकर देवर्द्धि तक की समग्र आचार्य परम्परा को प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत करती हैं, ऐसा नहीं माना जा सकता । प्रथम तो 'कल्पसूत्र' स्थविरावली और 'नन्दीसूत्र' स्थविरावली में भी अन्तर है । इसके अतिरिक्त नियुक्ति आदि में अनेक आचार्यों एवं प्रमुख मुनियों के नाम मिलते हैं, इनका भी इनमें अभाव है। यद्यपि 'कल्पसूत्र' की स्थविरावली में अनेक गणों, शाखाओं और कुलों की उत्पत्ति सम्बन्धी सूचना तो है लेकिन आगे वे गण और शाखायें किस रूप में चलती रही इसका उसमें हमें कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है, फिर भी 'कल्पसूत्र' स्थविरावली इस अर्थ में पूर्णतः प्रामाणिक है कि उसमें उल्लेखित गणों, कुलों, शाखाओं की पुष्टि मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त अभिलेखों से हो जाती है।
इस काल में हुये अन्य आचार्यों और प्रमुख मुनियों के नामों का उल्लेख हम निम्न दो आधार पर प्रस्तुत कर सकते हैं - १. साहित्यिक आधार और २. अभिलेखीय
आधार ।
साहित्यिक आधार को भी दो भागों में बाँटा जा सकता है- एक इस काल के प्रमुख ग्रन्थों के कर्ताओं और उनके द्वारा दी गयी अपनी वंश परम्पराओं के आधार पर और दूसरा नियुक्ति आदि तत्कालीन ग्रन्थों में जो नाम उपलब्ध होते हैं उनके आधारों पर। इन दोनों आधारों पर हम विशेष विस्तार में न जाकर केवल नाम निर्देश ही करेंगे ।
साहित्यिक आधार पर हमें जो प्रमुख ग्रन्थों और उनके कर्ताओं के उल्लेख मिलते हैं उनमें आगम साहित्य के अन्तर्गत 'दशवैकालिक' के कर्ता के रूप में आर्य शयम्भव और उनके पुत्र मणक का उल्लेख है। वैसे शयम्भव का उल्लेख महावीर की पट्ट-परम्परा में भी है। छेदसूत्रों के कर्ता के रूप में भद्रबाहु का उल्लेख है । यह नाम भी हमें 'कल्पसूत्र' की पट्ट- परम्परा में मिल जाता है। उपांग साहित्य में 'प्रज्ञापना' के कर्ता के रूप में आर्य श्याम का उल्लेख है। इनका उल्लेख भी 'नन्दीसूत्र' स्थविरावली में हमें सामज्ज (श्यामार्य) के रूप में मिलता है।
'अनुयोगद्धार' के कर्ता के रूप में आर्य रक्षित और 'नन्दीसूत्र' के कर्ता के रूप में देववाचक का उल्लेख है । आर्य रक्षित तथा देववाचक को यदि देवर्द्धि माना जाय तो इन दोनों का उल्लेख भी 'कल्पसूत्र' स्थविरावली में मिलता है।
आगमेतर ग्रन्थों में जिन प्रमुख ग्रन्थों और उनके कर्ताओं के उल्लेख मिलते हैं उनमें गोविन्द नियुक्ति के कर्ता आर्य गोविन्द का उल्लेख है । यह उल्लेख भी 'नन्दीसूत्र' स्थविरावली में है । अन्य नियुक्तियों के कर्ता सामान्यतया भद्रबाहु माने जाते है। किन्तु यह विवादास्पद है कि नियुक्तियों के कर्ता प्राच्यगोत्रीय भद्रबाहु प्रथम है या
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