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श्राद्धविधि प्रकरण
ववहार भावयोगे । इसमे उबम्म सच्चे ॥ १ ॥
( १ ) जनपद सत्य - कोंकण देश में पानी को पिश्च, नीर और उदक कहते हैं, अतः जिस देश में जिस वस्तु को जिस नाम से बुलाया जाता हो उस देश की अपेक्षा जो बोला जाता है उसे " जनपद सत्य" कहते हैं ।
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(२) संमत सत्य - कुमुद, कुवलय, आदि अनेक प्रकार के कमल कादव में उत्पन्न होते हैं उन सबको पंकज कहना चाहिये, परंतु लौकिक शास्त्र ने अरविंद को पंकज गिना है। दूसरे कमलों को पंकज में नहीं गिना । इस सत्य "संमत सत्य" कहते हैं।
(३) स्थापना सत्य -काष्ट, पाषाण वगैरह की अरिहंत प्रभु की प्रतिमा, एक, दो, तीन, चार वगैरह अंक, पाई, पैसा, रुपया, महोर आदि में राजा वगैरह का सिक्का, इस सत्य को "स्थापना सत्य" कहते हैं ।
(ε नाम सत्य-- - दरिद्री होने पर भी धनपति नाम धारण करता हो, पुत्र न होने पर भी कुलवर्धन नाम धारण करता हो उस सत्य को "नाम सत्य" कहते है ।
(५) रूप सत्य - वेष मात्र के धारण करने वाले यति को भी व्रती कहा जाता है, इस सत्य को "रूप सत्य" कहते हैं ।
(६) प्रतित्य सत्य - जैसे कनिष्ठा अंगुली की अपेक्षा अनामिका अंगुली लंबी है और अनामिका की अपेक्षा कनिष्टा छोटी है, इस तरह एक एक की अपेक्षा जो वाक्यार्थ बोला जाता है उसे "प्रतीत्य सत्य" कहते हैं ।
(७) व्यवहार सत्य - 1 -पर्वत पर घास जलता हो तथापि पर्वत जलता है, घड़े में से पानी भरता हो तथापि घड़ा भरता है; इस प्रकार बोल ने का जो व्यवहार है इसे “व्यवहार सत्य" कहते हैं ।
(८) भाव सत्य - बगुली पक्षी को न्यूनाधिक प्रमाण में पांचों ही रंग होते हैं परंतु सफेद रंग की अधिकता से वह सफेद ही गिनी जाती है, एवं वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, इनमें से जो जिसमें अधिक उस वह उसी रूप गिना जा सकता है और इसे “भाव सत्य" कहते हैं ।
(६) योग सत्य - जिसके हाथ में दंड हो वह दंडी और जिसके पास धन हो वह धनी कहलाता है । एव जिसके पास जो वस्तु हो उस परसे उसी नाम से बुलाया जा सकता है। इसे "योग सत्य" कहते हैं । (१०) उपमा सत्य -- यह तालाब समुद्र के समान है, इस प्रकार जिसे उपमा दी जाय उसे "उपमा सत्य" कहते हैं।
केवल महाराज के पूर्वोक्त वचन सुनकर सावधान हो शुकराजकुमार अपने माता पिता को प्रकटतया माता पिता कहकर बोलने लगा । इस से राजा आदि सर्व परिवार बड़ा प्रसन्न हुआ। राजा श्रीदत्त केवली से कहने लगा कि, स्वामिन्! धन्य है आपको कि जिसे इस यौवनावस्था में वैराग्य प्रगट हुआ । 'भगवन् ! ऐसा वैराग्य मुझे कब उत्पन्न होगा ? केवली महाराज ने उत्तर दिया कि “राजन् ! जब तेरी चन्द्रवती रानी का पुत्र तेरी दृष्टि में पड़ेगा उसी वक्त तुझे वैराग्य उत्पन्न होगा" । केवली के वचनों को सराहता हुवा और उन्हें प्रणाम कर अपने परिवार सहित प्रसन्नता पूर्वक राजा अपने राजमहल में आया। दया और सम्यक्त्वरूप दो