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श्राद्धविधि प्रकरण मित्य निष्फलसंचारी, युद्धप्रेक्षी शराहतः॥
क्षयी शक्त विरोधेन, स्वल्पार्थः स्फीतडंवरः॥ १७॥ ६१ विना ही काम प्रतिदिन निक्कमा किरा करे । ६२ बाण लगने पर भी संग्राम देखा करे । ६३ बड़े आदमीके साथ विरोध करके हार खाय। ६४ कम पैसेसे आडंबर दिखलावे।
पंडितोऽस्पीति वाचालः सुभटोऽस्पीति निर्भयः॥
उब्देजनोति स्तुतिभिः, मर्मभेदी स्मीतोक्तिभिः॥१८॥ ६५ मैं पंडित हूं इस विचारसे अधिक बोला करे। ६६ मैं शूरवीर हूँ इस धारणासे निर्भय रहे। ६७ अत्यन्त स्तुतीसे उद्वेग पाय। ६८ हास्यमें मर्मभेद होनेवाली बात कह डाले।
दरिद्रहस्त न्यस्तार्थः संदिग्धेऽर्थे कृतव्ययः॥
स्वव्यये लेखकोद्वगी, देवाशात्त्यक्तपौरुषः॥६॥ ६९ दरिद्रीके हाथमें धन दे। ७० शंकावाले कार्योंमें प्रथमले ही खर्च करे। ७१ अपने खरचमें खर्च हुये द्रव्यका हिसाब करते समय अश्चात्ताप करे । ७२ कर्म पर आशा रखकर उद्यम न करे।
गोष्टीरति दरिद्रश्च, तैव्य विस्मृतभोजनः॥
__गुणहीनः कुलश्लाधी, गीतगायी खरस्वरः ॥२०॥ ७३ दरिद्री होकर बातोंका रसिया हो। ७४ निर्धन हो और भोजन विसर जाय। ७५ गुणहीन होने पर भी अपने कुलकी प्रशंसा करे। ७६ गधेके समान स्वर होनेपर गाने बैठे।
भार्याभयानिषिद्धार्थी, कार्यण्ये नाप्तदुर्दशाः॥
व्यक्तदोष जनश्लाधी, सभामभ्याद्विनिर्गतः ॥२१॥ ७७ मेरी स्त्रीको यह काम पसंद होगा या नहीं। इस विचारसे उसे काम ही न बतावे। ७८ द्रव्य होने पर भी कृपणता से बद हालतमें फिर। ७६ जिसमें प्रत्यक्ष अवगुण हो लोकोंमें उसकी प्रशंसा करे। ८० सभामेंसे बीचमें ही उठकर चल पड़े।
दूतो विस्मृतसंदेशः कासवाश्चोरिकारतः॥
भूरि भोजव्ययं कीस, श्लाघारी स्वल्पभोजनः ॥२२॥ ८१ संदेश जाननेवाला होने पर सन्देश भूल जाय। ८२ खासीका दर्दी होनेपर चोरी करने जाय । ८३ कीर्तिके लिये भोजनमें अधिक खर्च करे। ४४ लोग मेरी प्रशंसा करेंगे इस विचारसे भोजन करते समय भूखा उठे।
स्वल्पभोज्येति रसिको, विक्षिप्तच्छमचाटुभिः॥
वेश्या सपत्नकलही, द्वयोर्मत्र तृतीयकः ॥२३॥ ८५ कम खानेके पदार्थमें अधिक खानेका रसिया हो । ८६ कपटी और मीठे वचन बोल कर जल्दि करे ८७ वेश्याको सौत समान समझ कर उसके साथ कलह करे। ८८ दो जने गुप्त बात करते हों वहाँ जाकर खडा रहे।