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श्राद्धविधि प्रकरण सुना जाता है कि किसी नगर निवासी एक मनुष्य जहां बिलकुल बनियोंके थोड़े से घर हैं वैसे गांवमें धन कमानेके लिये जाकर रहा। वहां पर खेती वाड़ी बगैरह विविध प्रकारके व्यापार द्वारा उसने कितना एक धन कमाया तो सही परन्तु इतनेमें ही उसके रहनेका घासका झोंपड़ा शिलग उठा। इसी प्रकार जब उसने दूसरी दफे कुछ धन कमाया तब चोरीकी धाडसे, राजदण्ड, बगैरह कारणोंसे जो जो कमाया सो गमाया। एक दिन उस गांवके किसी एक चोरने किसी नगरमें जाकर डाका डाला इससे उस गांवके राजाने उस गांवके वनियों वगैरहको पकड़ लिया। तब गांवके ठाकुरने राजाके साथ युद्ध करना शुरू किया, इससे उस बड़े राजाके सुभटोंने उन्हें खूब मारा। इसी कारण कुग्राममें निबास न करना चाहिए।
ऊपर लिखे मुजव उचित स्थानमें निवास किया हुआ हो तथापि यदि वहां गांवके राजाका भय, एवं अन्य किसी राजाका भय, या परस्पर राज बंधुओंमें विरोध हुआ हो, दुर्भिक्ष, मरकी, ईति याने उपद्रव, प्रजा बिरोध, वस्तुक्षय, याने अन्नादिक की अप्राप्ति, वगैरह अशांतिका कारण हो तो तत्काल ही उस नगर या गांव को छोड़ देना चाहिए। यदि ऐसा न करे तो तीनों बर्गकी हानि होती है। जैसे कि जब मुगल लोगोंने दिल्लीका विध्वंस किया और उन लोगोंका वहांपर जब भय उत्पन्न हुआ तब जो दिल्लीको छोड़कर गुजरात बगैरह देशोंमें जा वसे उन्होंने तीनवर्गकी पुष्टि करनेसे अपने दोनों भव सफल किये। परन्तु जो दिल्लीको न छोड़कर वहां ही पड़े रहे उन्हें कैदका अनुभव करना पड़ा और वे अपने दोनों भवसे भ्रष्ट हुए। वस्तुक्षय होनेसे स्थान त्याग करना बगैरह पर क्षिति प्रतिष्ठित, चणकपुर, ऋषभपुरके द्गुष्टान्त समझ लेने चाहिए, एवं ऋषिओंने कहा है ( रवीइ चण उसभ कुसग्गं, रायगिह चंप पाडली पुत्त। क्षिति प्रतिष्ठितपुर, चणकपुर, कुशाग्रपुर, चंपापुरी, राजगृही, पाटलीपुर, इस प्रकारके दृष्टान्त नगर क्षयादि पर समझना। जो योग्य वासस्थानमें रहनेका कहा है उसमें वासस्थान शब्दसे घर भी समझ लेना।
"पड़ोस खराब पड़ोसमें भी न रहना चाहिए इसलिये आगममें इस प्रकार कहा है किखरिमा तिरिख्ख जोणि, तालायर समणमाहणा सुसाणा।
बग्गुरिअ वाह गम्मिम, हरिएस पुलिं मच्छंधो ॥१॥ वेश्या, गड़रिया, गवालादिक, भिखारी, बौद्धके तापस, ब्राह्मण, स्मशान, वाघरी-हलके आवार वाली एक जाति, पुलिसादिक, चांडाल, भिल्ल, मछिआरे, जुपार चोर नड नठ, भट्ट वेसा कुकम्म कारिणं ।
संवासं वज्जिमझा, घर हटाणं च मिशि ॥२॥ जुये बाज, चोर, नट (वादी ), नाटक करने बाले, भाट (चारण) कुकर्म करने वाले, आदि मनुष्योंका पड़ोस तथा मित्रता वर्जनी चाहिए। दुःखं देव कुलासन्ने, गृहे हानि चतुः पथैः।।
धूर्तामास गृहाभ्यासे, स्यातां सुत धनवयौ ॥१॥