Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 450
________________ श्राद्धविधि मकर ४३ सोलहवां द्वारः ब्रह्मचर्य यावज्जोव पालना चाहिए। जैसे कि पेथड़शाह ने बत्तीसवें वर्ष में ही ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार किया था। क्योंकि भीम सोनी मढी पर आवे तब ब्रह्मचर्य लूं इस प्रकारका पण किया हुआ होने के कारण उसने तरुग वयमें भी ब्रह्मवर्य अंगोकार किया था। ब्रह्मचर्य के फलपर अर्थदीपिका में स्वतंत्र संपूर्ण अधिकार कहा गया है। इसलिये दृष्टान्तादि वहांसे ही समझ लेना चाहिए । श्रावककी प्रतिमायें श्रावकको संसार तारणादिक दुष्कर तप विशेषसे प्रतिमादि तप वहन करना चाहिये । सो श्रावककी ग्यारह प्रतिमाओं का स्वरूप इस प्रकार समझना । दंसण बय सापाइय, पोसह पडिमा प्रबंभ सचित्त । आरम्भपेस उद्दिठ, वज्जए समण भूए ॥ १ ॥ १ 'दर्शन प्रतिमा' एक मासकी है, उसमें अतिचार न लगे इस तरहका शुद्ध सम्यक्त्व पालना । २ व्रत प्रतिमा दो महिने की है, उसमें पूर्वोक्त क्रिया सहित पहले लिये हुए बारह व्रतोंमें अतिचार न लगे उन्हें इस प्रकार पालना । ३ 'सामायिक प्रतिमा' तीन मासकी है, उसमें पूर्वोक्त क्रिया सहित सुबह, शाम, दो दफा शुद्ध सामायिक करना । ४ 'पौषध प्रतिमा' चार महीनेकी है, उसमें पूर्वोक्त क्रिया सहित अष्टमी, चतुदशी पर्व तिथि पौषध अतिचार न लगे वैसे पालन करना । ५ 'काउसग्ग प्रतिमा' पांच मासकी है, उसमें पूर्वी क्रिया सहित अमी चतुर्दशी के लिए हुए पौषध में रात्रिके समय कायोत्सर्ग में खड़े रहना । ६ ब्रह्म प्रतिमा' छह महीने की है, उसमें पूर्वोक्त क्रिया सहित ब्रह्मचर्य पालन करना । ७ 'सवित्त प्रतिमा' सात माकी है, उसमें पूर्वोक्त क्रिया सहित सवित्त भक्षण का परित्याग करना । आठ महीने की है, उसमें पूर्वोक्त क्रिया सहित स्वयं आरम्भ का परित्याग करे मालकी है, उसमें पूर्वी क्रिया सहित अपनी तरफसे नौकर चाकर को कहीं न भेजे । १० 'उद्दिश्य वर्जक प्रतिमा' दस मास की है, उसमें पूवोक्त क्रिया सहित अपने आश्रित आरम्भ का त्याग करे और ११ 'श्रवण भूत प्रतिमा' ग्यारह मास की है, उसमें पूर्वोक्त सर्व क्रिया सहित साधुके समान बिचरे । यह ग्यारह प्रतिमाओका संक्षिप्त अर्थ कहा गया है। ८ 'आरम्भ त्याग प्रतिमा' । अब प्रत्येक प्रतिमा का जुदा उल्लेख करते हैं । १ दर्शन प्रतिमा - राजाभियोगादिक छह आगार जो खुले रक्खे थे उनसे रहित चार प्रकारके श्रद्धानादि गुणयुक्त, भय, लोभ, लोकलज्जादि से भी अतिचार न लगाते हुये त्रिकाल देवपूजादि कार्यों में तत्पर रह कर जो एक मास पर्यन्त पंचातिचार रहित शुद्ध सम्यक्त्व को पाले तब वह प्रथम दर्शन प्रतिमा कहलाती है । २ व्रत प्रतिमा- दो महीने तक अखंडित पूर्व प्रतिमामें बतलाये हुये अनुष्ठान सहित अणुव्रतों का पालन करे याने उनमें अतिचार न लगाये सो दूसरी व्रत प्रतिमा कहलाती है । ३ सामायिक प्रतिमा - मीन महीने तक उभयकाल अप्रमादी हो कर पूर्वोक्त प्रतिमा अनुष्ठान सहित सामायिक पाले सो तासरी सामायिक नामक प्रतिमा समझना । ६ 'प्रेष्य प्रतिमा' नव

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