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श्राद्धविधि प्रकरण और मृत्यु समीप आ जानेसे द्रव्य और भाव इन दोनों प्रकारको संलेखना को करे। उसमें द्रव्यसलेखना याने आहारादिक का परित्याग करना और भावसंलेखना क्रोधादिक कषायका त्याग करना। कहा भी है किदेहमि असंलिहिए, सहसा धाऊ हि खिज्जमाणेहिं ।
जायइ अट्टममाणं, सरीरिणो चरमकालंमि॥१॥ शरीरको अनसन न कराने पर यदि अकस्मात् धातुओं का क्षय हो जाय तो शरीरधारी को अन्तिम कालमें आतध्यान होता है।
न ते एयं पसंसामि, कि साहु सरीरयं । किसं ते अंगुलीभग्ग, भावसंलीण माचर ॥२॥ हेमाधु! मैं तेरे इस शरीर के दुर्बलपन को नहीं प्रशंसता। तेरे शरीरका दुर्बलपन तो इस तेरी अंगुली के मोड़नेले मालूम ही हो गया है । इसलिये भावसंलीनता का आवरण कर। याने भावसंलीनता आवे विना द्रव्यसंलोनमा फलीभूत नहीं हो सकती।
"मृत्यु नजीक आनेके लक्षण” खन्न देखनेसे, देवताके कथन वगैरह कारणोंसे मृत्यु नजीक आई समझी जा सकती है। इस लिवे पूक्ष्में पूर्वाचार्यों ने भी यही कहा है कि
दुःस्वप्न प्रकृतिसागै, दुनिमित्वैश्च दुग्रहैः । हंसधारान्यथाश्च, ज्ञेयो मृत्युसमीपगः॥१॥
खराब स्वप्न आनेसे, प्रकृतिके बदल जानेसे, खराब निमित्त मिलने से, दुष्ट ग्रहसे, नाड़ीये याने नब्ज बदल जामेसे मृत्यु नजदीक आई है, यह बात मालूम हो सकती है।
इस तरह संलेखना करके श्रावक धर्मरूप तपके उद्यापन के समान अन्त्यावस्था में भी दीक्षा अंगीफार करे । इसलिये कहा है किएग दिवसंपि जीवो, पन्चज्ज मुवागमो अनन्नपणो।
जइ विन पावइ मुख्खं, अवस्स वेमाणिो होई ॥१॥ जो मनुष्य एक दिनकी भी अनन्य मनसे दीक्षा पालन करता है वह यद्यपि उस भवमें मोक्षपदको नहीं पाता तथापि अवश्य ही वैमानिक देव होता है।
नल राजाका भाई कुबेरका पुत्र नवीन परिणीत था। परन्तु अब 'पांच ही दिनका तेरा आयुष्य है' इस प्रकार ज्ञानी का बधन सुन कर तत्काल ही उसने दीक्षा अंगीकार की और अन्तमें सिद्धि पदको प्राप्त
हुआ।
वाहन राजाने नौ प्रहरका ही आयुष्य बाकी है यह बात बानीके मुखसे जान कर तत्काल ही दीक्षाली मोर भन्तमें वह सर्वार्थसिद्धि विमान में देव तया पैदा हुआ।
बारा किये बाद दीक्षा ली हो तो उस वक जैनशासन की उन्नति निमित्त यथाशकि धर्मार्थ खच रमा, जैसे कि उस अवसर में सातों क्षेत्रमें सात करोड़ द्रव्यका व्यय थराद के संघपति आभूने किया था।