Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 437
________________ ४२६ श्राद्धविधि प्रकरण सो पैंतालीस वर्ष व्यतीत होने पर सिवराज जयसिंह राजाके कोल्चाल सजन ने तीन वर्ष तक सोरठ देशकी वसूलात मेसे इकट्ठे किये हुये सप्ताईस लाख रुपये खर्च कर नवीन पाषाण मय मन्दिर कराया। जब वह सत्ताईस लाख द्रव्य सिद्धराज जयसिंह राजाने मांगा तब उसने उत्तर दिया कि महासन मिहनार पर निधान कराया है। राजा वहां देखने आया और नवीन मन्दिर देख कर प्रसन्न हो बोला कि यह नधीन मन्दिर किलमे बनवाया ? सलम ने कहा स्वामिन् यह आपने ही बमवाया है। यह सुन सजाः आश्चर्य में पड़ा। फिर सजन ने सर्व वृत्तान्त राजासे कह सुनाया। स्वजन वर्गों श्रीमन्तों के पाससे सत्ताईस लाख रुपिया ले राजासे कहा कि 'आप या तो यह रुपियाले औं या मन्दिए बामधाने से उत्पन्न हुआपुण्य लें । विवेकी राजाने पुण्य ही अगीकार किया परन्तु सत्ताईस लाख रुपिया न लिया। इतना ही नहीं बल्कि गिरनार पर श्री नेमिनाथ स्वामी के मन्दिर के खर्च के लिये बारहागांव मन्दिरको समर्पण किये। इसी प्रकार जीवित स्वामी देवाधिदेव की प्रतिमाका चैत्य प्रभावती रामाने कराया था और अनुपामसे चंप्रद्योतन राजाने उसकी पूजा के लिये बारह हजार गांव समर्पण किये थे यह बात प्रतिवर्ष पर्वृषणा के अठाई व्याख्यान में सुनने में ही आती है। इस प्रकार देवतच्या की पैदास करना कि जिससे विशिष्ट पूजादिक विधि अविच्छन्न त्या हुआ करे और अब आवश्यकता पड़े तब मन्दिरादिके सुधारने वगैरह में द्रव्यका सुभीतम हो सके। इसलिये कहा है किजो जिणघराण' मवणं, कुणइ जहासास्ति घिस्ता विश्व संजुस्त। . सो पायइ परम सुहं, सुरमाण अभिनन्दिो सुइरं ॥१॥ जो मनुष्य यथाशक्ति या सर्व पूर्वक जिनेश्वर भगवान के मन्त्रि बनवाता है उसकी देवताओं के. समुदाय भी बहुत काल तक अनुमोदना करते हैं और वह मोक्ष पदको प्राप्त करता है। छठे द्वारमें जिन बिम्ब बनवाने का विधि बतलाया है। अर्हत. बिम्ब मणिमय, स्वर्णादिक धातुमाया, चन्दनादि काष्ठमय, हाथीदांता मय, उत्तम पाषाण मय, मट्टी माय, पांच सौ धनुषा से लेकर छोटेमें छोटा एक अंगुष्ठ प्रमाण भी यथा शक्ति अवश्य बनवाना चाहिये। कहा है कि. सन्मृस्तिकाम्लशिलातलाइन्तसेवा, सौनसानपणिचादनवारु विबं । दुर्बति जननिह ये खधनानुरूपं ते प्राप्नुवंति नृसुरेषु महासुखानि ॥ . श्रेष्ट मट्टीफे, निर्मल शिला तलके, दत्तिके, चांदीके, सुवर्णके, रत्नके, मणीने और चन्दनाके. जो मनुष्य उत्तम बिम्ब बनवाता है और जैन शासन की शोभा बढ़ानेके लिये यथाशक्ति धन खर्चा करता है वह मनुष्य देवताके महासुख को प्राप्त करता है। दालिई दोहग्गं कुजाई कुसरीर कुगई कुमइौं । ___अबमाण रोग सोगा, न हुति जिनपिंब कारिणं ॥२॥ जिनबिम्ब भराने वालेको दारिद्र, दुर्भाग्य, कुजाति, कुशरीर, कुगति, कुमति, अपमान, एवं रोग, शोक, आदि प्राप्त नहीं होते । इसलिये कहा है कि

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