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श्राद्धविधि प्रकरण पासाई आ पडिमा, लख्खण जुत्ता समत्त लंकरणा।
जह पल्हाइपणं तह निज्जर मोवि प्राणाहि ॥१॥ मनोहर रूप वाली देखने योग्य लक्षण युक्त समस्त अलंकार संयुक्त मनको आल्हाद करने वाली प्रतिमासे बड़ी निर्जरा होती है। • मन्दिर व प्रतिमा वगैरह कराने से महान फलकी प्राप्ति होती है। जहां तक वह मन्दिर रहे तब तक या असंख्य काल तक भी उससे उत्पन्न होने वाला पुण्य प्राप्त हो सकता है। जैसे कि भरत वक्रवर्ती द्वारा कराये हुये अष्टापद परके मन्दिर, गिरनार पर ब्रह्मद्र का कराया हुआ कंचनवलानक नामक मन्दिर (गिरनार में कंचनवलानक नामको गुफामें ब्रह्मद्र ने नेमिनाथ स्वामी की प्रतिमा पधराई थी ) वगैरह भरत चक्रवर्ती की मुद्रिका मेंको कुल्यपाक 'नामक तीर्थ पर रही हुई माणिक्य स्वामी की प्रतिमा, थंभणा पार्श्वनाथ की प्रतिमा, वगैरह प्रतिमायें आज तक भी पूजी जाती हैं। सो ही कहते हैं किजल शीताशन भोजन नासिक वसनान्द जीविकादानं ।
सामायक पौरुष्या घ पवासा भिग्रह व्रताधथा वा ॥ १॥ तणयाम दिवस मासायन हायन जीविताधवधि विविधं ।
पुण्यं चैसार्चा दे स्वनबधि तद्दशनादि भवं ॥२॥ १ जल दान, २ शीताशन, (ठंडे भोजन का दान ) ३ भोजन दान, ४ सुगंधी पदार्थ का दान, ५ वस्त्रदान, ६ वर्षदान, ७ जन्म पर्यन्त देनेका दान, इन दोनोंसे होने वाले सात प्रकार के प्रत्याख्यान ।१ सामायिक २ पोरसी का प्रत्याख्यान, ३ एकाशन, ४ आंबिल, ५ उपवास, ६ अभिग्रह, ७ सर्वव्रत, इन सात प्रकार के दान और प्रत्याख्यान से उत्पन्न होते हुए सात प्रकार के अनुक्रमसे पुण्य । १ पहले दान प्रत्याख्यान का पुण्य क्षण मात्र है। २ दूसरे का एक प्रहरका । तीसरे का एक दिनका। चौथेका एक मासका। पांचवें का एक अयन याने ६ मासका छठेका एक वर्षका और सातवें का जीवन पर्यन्त फल है। इस प्रकार की अवधिवाला पुण्य प्राप्त होता है। परन्तु मन्दिर बनवाने या प्रतिमा बनवाने या उनके अर्चन दर्शनादिक भक्ति करनेमें पुण्यकी अवधि ही नहीं है याने अगणित पुण्य है।
"पूर्व कालमें महा पुरुषोंके बनवाए हुए मन्दिर" इस चौवीसी में पहले भरत चक्रवर्ती ने शत्रुजय पर रत्नमय, चतुष्मुख, चौराशी मंडप सहित, एक कोस ऊंचा, तीन कोस लंबा, मन्दिर पांच करोड़ मुनियों के साथ परिवरित, श्री पुंडरीक स्वामीके ज्ञाननिर्वाण सहित कराया था। इसी प्रकार बाहुबलि मरुदेवो प्रमुख ट्रंकोंमें गिरनार, आबू , वैभारगिरि, समेदशिखर और अष्टापद वगैरह पर्वतों पर पांच सौ धनुषादिक प्रमाण वाली सुवर्णमय प्रतिमायें और जिनप्रासाद कराए थे। दंडवीर्य राजा, सगर चक्रवती वगैरह ने उन मन्दिरोंके जीर्णोद्धार कराये थे। हरीषेण चक्रवर्ती ने जैन मन्दिरोंसे पृथ्वीको विभूषित किया था। संप्रति राजाने सवा लक्ष मन्दिर बनवाए थे। उसका सौ वर्षका आयुष्य