Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 443
________________ श्राद्धविधि प्रकरण वे पुरुष धन्य हैं, कृतपुण्य हैं, उस पिताको धन्य है, उस माताको धन्य है, एवं उस सगे सम्बन्धी समूहको भी धन्य है कि जिनके कुलमें चारित्रको धारण करनेवाला एक भी महान पुत्र पैदा हुआ हो । लौकिकमें भी कहते हैं कितावत् भ्रमन्ति संसारे, पितरः पिण्डकाक्षिणः। ___ यावत्कले विशुद्धात्मा यतिः पुत्रो न जायते ॥१॥ पिण्डकी आकांक्षा रखने वाले पित्री तब तक ही संसारमें भटकते हैं कि जब तक कुलमें कोई विशु. द्धात्मा यतिपुत्र न हो। द्वार नावां-पदस्थों के पदकी स्थापना करना। जैसे कि गणीपद, वाचनावार्यपद, उपाध्यायपद, आवार्यपद, वगैरह की स्थापना कराना। या पुत्रादिकों को वा दूसरोंको उपरोक्त पद देनेके योग्य हे उन्हें शासन उन्नत्ति के लिये बड़ो पदवियोंसे महोत्सव पूर्वक विभूषित करना। सुना जाता है कि पहले समवसरण में इन्द्रमहाराज ने गणपद की स्थापना कराई है। मंत्री वस्तु पाल ने भी इक्कीस आचार्योंको आचार्यपद स्थापना करायी थी। नवम द्वार समाप्त ॥ दशम द्वारः ज्ञान भक्ति- पुस्तकोंको, श्री कल्पसूत्रागम, जिनचरित्रादि सम्बन्धी पुस्तकोंको न्यायो. पार्जित द्रव्य खर्च कर विशिष्ट कागजों पर उत्तम और शुद्ध अक्षरादि की युक्तिसे लिखाना। वैराग्यवान गीतार्थोके पास प्रारंभके प्रौढ़ महोत्सव करके प्रतिदिन पूजा बहुमानादि पूर्वक अनेक भव्य जीवोंके प्रतिबोध के लिये व्याख्यान कराना। उपलक्षण से पढने लिखने वालोंको वस्त्रादिक की सहाय देना इस लिये कहा है कि ये लेखयन्ति जिनशासन पुस्तकानि, व्याख्यानयन्ति च पठन्ति च पाठयन्ति। श्रुण्वन्ति रक्षणविधौ च समाद्रियन्ते, ते मर्त्य देव शिवशर्मनरा लभन्ते ॥१॥ जो मनुष्य जैन शासनके पुस्तक लिखता है, व्याख्यान करता है, उन्हें पढ़ता है, दूसरोंको पढ़ाता है, सुनता है, उनके रक्षण करनेके कार्यमें आदर करता है, वह मनुष्य सम्बन्धी तथा देवसम्बन्धी एवं मोक्षके सुखों को प्राप्त करता है। पठति पाठयति पठतापमु, वसन भोजन पुस्तक वस्तुभिः । प्रतिदिनं कुरुतेय उपग्रह, स इह सर्व विदेवभवेन्नरः॥२॥ जो मनुष्य स्वयं उन पुस्तकोंको पढ़ता है, दूसरोंको पढाता है, और जो जानता हो उन्हें वस्त्र भोजन पुस्तक, वगैरह घस्तुओं से प्रतिदिन उपग्रह करता है, वह मनुष्य इस लोकमें भी सर्व वस्तुओं को जानने वाला होता है। जैनागम का केवल ज्ञानसे भी अतिशयीपन मालूम होता है। इस लिये कहा है कि ओहो सुमोवउत्तो, सुभनाणी जइहु गिराहइ असुद्ध। ___ संकेवलिविभुजइ, भपयाणं सुभं भवेइ हवा ॥ १॥ सामान्य श्रुत हानके उपयोग वाला श्रुतहानी यद्यपि अशुद्ध आहार ग्रहण कर आता है, और यह बात

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