Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 435
________________ श्राद्धविधि प्रकरण ... नवीन जमीन खोदना, पाषाण घड़वाना, ईट वगैरह तैयार कराना, काष्ठ वगैरह फड़वाना, चूना आदि चिनवाने वगैरह में महा आरंभ होता है। चैत्यादिक करानेमें इस तरहकी आशंका न रखना। क्योंकि यतना पूर्वक प्रवृत्ति करनेसे दोष नहीं लगता। नाना प्रकारकी प्रतिमायें स्थापन करना, पूजन करना संघ. को बुलाना, धर्मदेशना कराना, दर्शन व्रतादिक की प्रतिपत्ति करना, शासन प्रभावना करना, यह अनुमोदनादिक अनन्त पुण्यका हेतु होनेसे शुभानुबन्धी होती है इस लिये कहा है किजा जयपाणस्सभवे, विराहणा सुशं विहिसमग्गस्स। सा होइ निज्जरफला, अम्पथ्य विसोहिजुत्तस्स ॥१॥ समप्र विधियुक्त, यतना पूर्वक करते हुए जो विराधना होती है वह दयात्मक विशुद्धियुक्त होनेसे सब निर्जरारूप फलको देनेवाली है। जीर्णोद्धार नवीनजिनगेहस्य, विधाने यत्फलं भवेत् । तस्मादष्टगुणं पुण्य, जीर्णोद्धारेण जायते ॥१॥ नवीन मंदिर बनवाने में जो पुण्य होता है उससे जीर्णोद्धार करानेमें आठगुणा पुण्य अधिक होता है। जीनुसमुद्धृतेयावत्तावत्पुण्य ननूतने। ____उपमर्दो महास्तत्र, स्वचैयख्यातिधीरपि॥२॥ जीर्णोद्धार करानेसे जितना पुण्य होता है उतना पुण्य नवीन मन्दिर बनानेसे नहीं हो सकता। क्योंकि उसमें उपमर्दन अधिक होता है और यह हमारा मन्दिर है इस प्रकारकी प्रसिद्धि प्राप्त करनेकी बुद्धि भी रहती है। राया अमञ्च सिठी, कोडं बि एवि देसणं काउं। जिरणे पुन्वाययणे, जिणकप्पीयावि कारवई ॥३॥ राजा, अमात्य, शेठ, कौटुंबिक वगैरह को उपदेश देकर जिनकल्पी साधु भी जीर्णोद्धार पूर्वायतन सुधरवाते हैं। जिणभवणाइ जे उद्धरंति, मस्तीप्रसडिय पडिपाई। ते उद्धरंति अप्प, भीमाश्रो भवसमुद्दामो॥ ४ ॥ ____पुराने, गिरानेकी तैयारीमें हुए जिनभुवन को जो मनुष्य सुधरवाता है वह भयंकर भवसमुद्र से अपनी आत्माका उद्धार करता है। बाहडदे मंत्रीने जीर्णोद्धार करानेका विचार किया था, परन्तु उसका विचार आचारमें आनेसे पहिले ही उसकी मृत्यु हो गयी। फिर उसके पुत्र मंत्री वाग्भट्ट ने वही विचार करके वह कार्य अपने जिम्मे लिया। उसकी सहायके लिये बहुतसे श्रीमन्त श्रीवकोंने मिल कर अधिक प्रमाणमें चन्दा करना शुरू किया। - जिर

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