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श्राद्धविधि प्रकरण मन्दिर के, कुएके, बावड़ी के, स्मशान के, मठके, राज मन्दिर के पाषाण, ईट, काष्ट, वगैरह का सर्वत्र मात्र तक परित्याग करना चाहिए।
पाहाण मयं थमं, पीढ' च बार उत्ताई।
____एएगीहि विरुद्धा, सुहावहा धम्पडाणेसु ॥२॥ स्तंभे पीढा, पट्ट, वारसांख इतने पाषाण मय धर्म स्थानमें सुखकारक होते हैं परन्तु गृहस्थ को अपने घरमें न करना चाहिये। पाहाणप एकळं, कठ्ठपए पाहाणस्स थंभाई। पासाएम गिद्देवा, वजे अव्वा पयत्तेणं ॥३॥
पाषाण मयमें काष्ट, काष्ठ मयमें पाषाण, स्तंभे, मन्दिर में या घरमें प्रयत्न पूर्वक त्याग देना । ( याने घरमें या मन्दिर में एवं उलट सुलट न करना।
हल घाणय सगडाई, अरहट्ट यन्ताणि कंटई तहय।
पंचं बरि खीरतरु, एआणणं कठ्ठ वजिज्जा ॥४॥ हल, धाणी, गाडी, अरहट्ट, यन्त्र ( चरखादि भी ) इतनी वस्तुएं, कंटाला वृक्षकी या पंचुम्बर ( बड, पीपलादि ) 0वं दूध वाले वृक्षकी वर्जनीय हैं।
बीज्जरी केलिदाडिय, जंबीरी दोहिलिह अविलिया।
बुब्बुलिबोरी माई, कणयमया तहवि वज्जिज्जा ॥५॥ बिजोरी के, केलेके, अनारके, दो जातियोंके जंबोरेके, हलदूके, इमलीके, कोकरके, बेरीके, धतूरा, इत्यादि के वृक्ष मकान में लगाना सर्वथा वर्जनीय है।
एआणं जइअ जड़ा, पाडवसामो पव्विस्सई अहवा।
छायावा जमिगिहे कुलनासो हवइ तथ्येव ॥६॥ इतने बृक्ष यदि घरके पड़ोस में हों और उनकी जड़ या छाया जिस घरमें प्रवेश करे उस घरमें कुलका नाश होता है।
पुबुनय अथ्यहर, जमुन्नयं मंदिर धणसमिद्ध।
अवरुन्नय विद्धिकर, उत्तरुन्नय होइ उद्धसि ॥७॥ ___पूर्व दिशामें ऊंचा घर हो तो धनका नाश करे, दक्षिण दिशामें ऊंचा हो तो धन समृद्धि करे, पश्चिम दिशामें ऊंचा हो तो ऋद्धिकी वृद्धि करे, और यदि उत्तर दिशामें घर ऊंचा हो तो नाश करता है।
वलयागार कूणेहि, संकूलं अहव एग दुति कू।
दाहिण वामय दीह, न वासियव्चेरि संगेहं ॥८॥ गोल आकार वाला, जिसमें बहुतसे कोने पड़ते हों, और जो भीडा हो, एक दो कोने हो, दक्षिण दिशा तरफ और बायी दिशा तरफ लम्बा हो, ऐसा घर कदापि न बनवाना।
सयमेव जे किवाडा, पिहिअन्तिम उग्घडंतिते असुहा।