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श्राविधि प्रकरण मूर्ख निर्धन दूरस्थ, शूर मोक्षाभिलाषिणां ।
त्रिगुण्याधिकवर्षाणां, न देया कन्यका बुधः ॥२॥ मूर्ख, निर्धन, दूर देशमें रहने वाले, शूर वीर, मोक्षाभिलाषी, दीक्षा लेनेकी तैयारी वाले तथा कन्यासे तीन गुना अधिक वय वालेको कन्या नहीं देनी चाहिये। अत्यद्भुतधमाढ्याना, मति शीतातिरोषिणः।
विकलाग सरोगाणां, न देया कन्यका बुधैः ॥३॥ अतिशय आश्चर्यकारी, बड़े धनवानको, अतिशय ठंडे मिजाज वालेको, अति क्रोधीको, लूले, लंगड़े, पंगु वगैरह विकलांग को, सदा रोगीको, कदापि कन्या न देनी चाहिये। कुलजातिविहीनाना, पितृमातृवियोगिनां ।
गहिनीपुत्रयुक्तानां, न देया कन्यका बुधैः ॥४॥ कुल जातिसे हीन हो, माता पितासे वियोगी हो जिसको पुत्र वाली स्त्री हो, इतने मनुष्यों को विव. क्षण पुरुषको चाहिये कि अपनी कन्या न दे।।
बहु बरापवादानां, सदैवोत्पन्नमक्षिणां ।
__अालस्याहतचिचाना, न देया कन्यका बुधः॥५॥ . जिसके बहुतसे शत्रु हों, जो बहुत जनोंका अपवादी हो, जो निरन्तर कमा कर ही खाता हो याने बिल. कुल निर्धन हो, आलस्य से उदास रहता हो ऐसे मनुष्यको कन्या न देना। गोत्रिणां धूतचौर्यादि, व्यसनोपहतात्मनां ।
विदेशीनामपि प्रायो, न देश कन्यका बुधैः ॥६॥ अपने गोत्र पालेको, जुआ, चोरी वगैरह व्यसन पड़नेसे हीन आबरू पालेको और विशेषतः परदेशी को कन्या न देना। निर्व्याजा दायतादौ, भक्ता श्वश्रषु वत्सला स्वजने ।
- स्निग्धा च बंधुवर्ग, विकसित वदना कुलवधूटी ॥७॥ बंधु स्त्री वगैरह में निष्कपटी, सासूमें भक्ति वाली, सगे संबन्धियों में दयालु, बन्धु बर्गमें स्नेह वाली और प्रसन्न मुखी बहू होनी चाहिये ।। यस्य पुत्रा वशे भक्ता, भार्या छंदानुवतिनी। विभवेष्यपि संतोष, स्तस्य स्वर्ग इहैव हि ॥८॥
जिसके पुत्र वश हो और पिता पर भक्तिवान हो, स्त्री पतिकी आज्ञानुसार बर्तने वाली हो, संपतिमें भी संतोष हो, ऐसे गृहस्थ को यहां ही स्वर्ग है।
आठ प्रकारके विवाह आदमी और देवता की साक्षी पूर्वक लग्न करना, उसे पाणिग्रहण कहते हैं । साधारणतः लग्न या