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श्राद्धविधि प्रकरण जो तमाम विद्यायें सीखा हुआ होता है उसका पूर्वोक्त सर्व प्रकारकी आजीविकाओं में से चाहे जिस प्रकारकी आजीविका से सुख पूर्वक निर्वाह चल सकता है और वह धनवान भी बन सकता है। जो मनुष्य तमाम विद्याय सीखने में असमर्थ हो उसे भी सुखसे निर्वाह हो सके और परलोक का साधन हो सके इस प्रकारकी एकाद विद्या तो अवश्य सीखनी ही चाहिये। इसलिये कहा है किसुवसायरो अपारो, पाउथ्थोवं जिप्राय दुम्पेहा । तं किंपि सिरिख अन्च, जं कज्जकरं थोवं च ॥१॥
श्रुतज्ञान सागर तो अपार है, आयुष्य कम है, प्राणी खराब बुद्धि वाला है, इसलिये कुछ भी ऐसा सीख लेना जरूरी है कि जिससे अपना थोड़ा भी कार्य हो सके। जाएण जीवलोए. दोचेव नरेण सीख्खिाबाई।
कम्मेण जेण जीवइ, जेण यत्रो सग्गई जाइ ॥२॥ इस संसारमें जो प्राणी पैदा हुआ है उसे दो प्रकारका उद्यम तो अवश्य ही सीखना चाहिए। एक तो वह कि जिससे आजीविका चले और दूसरा वह कि जिससे सद्गति प्राप्त हो। निन्दनीय, पापमय कर्म द्वारा आजीविका चलाना यह सर्वथा अयोग्य है । यह दूसरा द्वार समाप्त हुआ।
अब तीसरे द्वारमें पाणिग्रहण करना बतलाते हैं।
३ पाणिग्रहण याने विवाह करना, यह भी त्रिवर्गकी सिद्धिके लिये होनेसे उचित हो गिना जाता है। अन्य गोत्र वाले, समान कुल वाले, सदाचारवान, समान स्वभाव, समान रूप, समान वय, समान विद्या, समान सम्पदा, समान वेष, समान भाषा, समान प्रतिष्ठादि गुण युक्तके साथ ही विवाह करना योग्य है। यदि समान कुल शीलादिक न हो तो परस्पर अवहेलना, कुटुम्ब कलह, कलंकदान बगैरह आपत्तियां आ पड़ती हैं। जैसे कि पोतनपुर नगरमें एक श्रावककी लड़की श्रीमतीका बड़े आदरके साथ एक मिथ्यात्वी ने पाणि प्रहण किया था परन्तु श्रीमती अपने जैनधर्म में ढूढ़ थी इससे उसने अपना धर्म न छोड़नेसे और समान धर्म न होनेसे उस पर पति विरक्त हो गया। अन्तमें एक घड़ेमें काला सर्प डाल कर घरमें रख कर श्रीमतीको कहा कि घरमें जो घड़ा रक्खा है उसमें एक फूलोंकी माला पड़ी है सो त ले आ। नवकार मन्त्रके प्रभावसे श्रीमतीके लिये सचमुच ही यह काला नाग पुष्पमाला बन गई । इस चमत्कार से उसके पति वगैरह ने जिनधर्म अंगीकार किया।
यदि कुल शीलादिक समान हो तो पेथड़शाह की प्राथमिणी देवीके समान सर्व प्रकारके सुख धर्म महत्वादिक गुणकी प्राप्ति हो सकती है। सामुद्रिक शास्त्रादि में बतलाए हुए शरीर वगैरह के लक्षण, जन्मपत्रिकादि देखना वगैरह करनेसे कन्या और वरकी प्रथमसे परीक्षा करना । कहा है किकुलं च शीलं च सनाथता च, विद्या च वित्तं च वपुवयश्च ।
वरे गुणा सप्त विलोकनीया, ततः पर भाग्यवती च कन्याः॥१॥ कुल, शील, सनाथता, विद्या, धन, निरोगी शरीर, उम्र, वरमें ए सात बात देख कर उसे कन्या देना। असो-पाद खुरे भलेकी प्राप्ति होना कन्याके भाग्य पर समझना।