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श्रादविधि प्रकरण
चित्तकलसाइ सोहा, सविसेसा मूल वारिसुहा ॥६॥ जिस घरके किवाड़ स्वयं हो बन्द हो जाय और स्वयं ही उघड़ जाते हों वह घर अशुभ समझना। जिस घरके चित्रित कलशादिक शोभा मूल द्वार पर हों, वह सुखकारी समझना। याने घरके अग्र भाग पर चित्र कारी श्रेष्ठ गिनी जाती हैं।
"घरमें न करने योग्य चित्र” जोइणि नट्टार भं, भारह रामायणं च निवजुद्ध।
__रिसिरिय देव चरिम', इन चित्त गेहि नहुजुत्त ॥७॥ योगिणी के चित्र, नाटक के आरंभ के चित्र, महाभारत के युद्धके चित्र, रामायण में आये हुए युद्ध के देखाव के चित्र, राजाओं में पारस्परिक युद्धके चित्र, ऋषिओं के चरित्र के दिखाव, देवताओं के चरित्र के दिखाव, इस प्रकार के वित्र गृहस्थ को अपने घरमें कराने युक्त नहीं। शुभ वित्र घरमें अवश्य रखना चाहिये।
फलिह तरु कुसुपवलि सरस्सई नवनिहाण जुम लच्छी।
___कलसं बद्धावणय; कुसुमावलि प्राइ सुहचित्त॥ फले हुए वृक्षोंके दिखाव, प्रफुल्लित वेलके दिखाव, सरस्वति का स्वरूप, नव निधान के दिखाव, लक्ष्मी देवता का दिखाव, कलश का दिखाव आते हुए वर्धापनी के दिखाव, चौदह स्वप्न के दिखाव की श्रेणी, इस प्रकार के चित्र गृहस्थ के घरमें शुभकारी होते हैं। गृहांगण में लगाये हुए वृक्षोंसे भी शुभाशुभ फल होता है।
खजूरी, दाडमारम्भा, कर्कन्धर्बीज पूरिका । उत्पद्यते गृहे यत्र, तन्निकृतंति मूलतः ॥८॥ ___ खजुरी, दाडम, केला, कोहली, बिजोरा, इतने वृक्ष जिसके गृहांगण में लगे हुए हों वे उसके घर के लिये मूलसे विनाशकारी समझना। ____लक्ष्मी नाशकरः क्षीरी, कंटकी शत्रुभीपदः ।
अपत्यघ्नः फली, स्तस्मादेषां काष्टमपि त्यजेत् ॥ १० ॥ जिनमेंसे दूध भरे ऐसे वृक्ष लक्ष्मोको नाश करनेवाले होते हैं, कांटेवाले वृक्ष शत्रुका भय उत्पन्न करनेवाले होते हैं, फलवाले बृक्ष बच्चोंका नाश करनेवाले होते हैं इसलिये वृक्षोंके काष्टको भी बर्जना चाहिये।
कश्चिदुचे पुरोभागे, वटः श्लाघ्य उदंबरः । दक्षिण पश्चिमेश्वच्छो, भागेप्लक्षस्तथोत्तरे ॥११॥
किसी शास्त्र में ऐसा भी कहा है कि घरके अग्रभागमें यदि बटवृक्ष हो तो वह अच्छा गिना जाता है और उंबर वृक्ष घरसे दहिने भागमें श्रेष्ठ माना जाता है। पीपल वृक्ष घरसे पश्चिम दिशामें हो तो अच्छा गिना जाता है, और घरसे उत्तर दिशामें पिलखन वृक्ष अच्छा माना जाता है।