Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 421
________________ ४१० श्राद्धविधि प्रकरण पास न रहना, जहां पर दुष्ट आशय वाले और हिंसक लोग निवास करते हों वहां पर न रहना, क्योंकि कुसंगति साधु पुरुषोंको याने श्रेष्ठ मनुष्यों के लिये निंदनीय कही है। तत्र धाम्नि निवसे न ह मेधी सम्पतन्ति खलु यत्र मुनींद्राः । यत्र चैत्यगृहमस्ति जिनानां, श्रवका परिवसन्ति यत्र च ॥१॥ जहां पर साधु लोग आते जाते हों वैसे स्थानमें गृहस्थको निवास करना चाहिए। तथा जहां जैन मन्दिर हो और जहां पर अधिक श्रावक रहते हों वैसे स्थानमें रहना चाहिए। विद्वत्लायो यत्र लोको निसर्गात् । शील यस्मिन् जीवितादप्यभीष्ट। निस यस्मिन् धर्मशीलाः प्रजाः स्युः तिष्ठेतस्मिन् साधु संगो हि भूत्यः ॥३॥ जहांके लोग स्वभावसे ही विचारशील-विद्वान्-हों, जिन लोगोंमें अपने जीवितके समान सदाचार की प्रियता हो, तथा जहां पर धर्मशील प्रजा हो, श्रावक को वहां ही अपना निवास स्थान करना चाहिए क्योंकि सत्संगत से ही प्रभुता प्राप्त होती है। जथ्थ पुरे जिण भुवणं, समयविउ साहु सावया जथ्य। . तथ्यसया वसियवं, पउरजलं इधणं जथ्य ॥४॥ जिस नगरमें जिम मन्दिर हो, जैन शासनमें जहां पर विज्ञ साधु और श्रावक हों, जहां प्रचुर जल और इंधन हो वहां पर सदैव निवास स्थान करना चाहिए। जहां तीनसो जिन भुवन हैं, जो स्थान सु श्रावक वर्गसे सुशोभित है, जहां सदाचारी और विद्वान् लोग निवास करते हैं, ऐसे अजमेरके समीपस्थ हरखपुर में जब श्री प्रियग्रंथ सूरि पधारे तब वहांके अठा रह हजार ब्राह्मण और छत्तीस हजार अन्य बड़े गृहस्थ प्रतिबोध को प्राप्त हुए थे। सुस्थानमें निवास करनेसे धनवान, और धर्मवान को वहां पर श्रेष्ठ संगति मिलनेसे धनवन्तता, विवेकता, विनय, विचारशीलता, आचार शीलता, उदारता, गांभीर्य, धैर्य, प्रतिष्ठादिक अनेक सद्गुण प्राप्त होते हैं । बर्तमान कालमें भी ऐसा ही प्रतीत होता है कि सुसंस्कारी प्राममें निवास करनेसे सर्व प्रकार की धर्म करनी वगैरह में भली प्रकार से सुभीता प्रदान होता है। जिस छोटे गांवमें हलके विचार के मनुष्य रहते हों या नीच जातिके आचार विचार वाले रहते हों वैसे गांवमें यदि धनार्जनादिक सुखसे निर्वाह होता हो तथापि श्रावक को न रहना चाहिए। इसलिये कहा है कि जथ्य न दिसतिजिणा, नय भवणं नेव संघमुह कमलं । नय सुच्चा जिणवयणं, किताए अथ्य भूईए ॥१॥ जहां जिनराजके दर्शन नहीं, जिन मन्दिर नहीं, श्री संघके मुखकमल का दर्शन नहीं, जिनवाणी का श्रवण नहीं उस प्रकारकी अर्थ विभूतिसे क्या लाभ ? यदि वांछसि मूर्खत्वं, ग्रामे वस दिनत्रयं । अपूर्वस्यागमो मास्ति, पूर्वाधीतं विनश्यति ॥२॥ ___यदि मूर्खताको वाहता हो तो तू तीन दिन गांवमें निवास कर क्योंकि वहां अपूर्व ज्ञानका आगमन नहीं होता और पूर्वमें किये हुए अभ्यासका भी विनाश हो जाता है। ,

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