Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 423
________________ श्राद्धविधि प्रकरण . मन्दिरके पास रहे वह दुःखी हो, बाजारमें घर हो उसे विशेष हानि होती है, धूर्त दीवानके पास रहनेसे पुत्र पौत्रादिक धनकी हानि होती है। मूर्खा धार्मिक पाखंडि, पतितस्तेन रोगिणां । ___ क्रोधनांसज हप्ताना, गुरु तुल्यग वैरिणां ॥२॥ म्वामिवंचक लुब्धाना, मृषा स्त्री बालघातिना। - इच्छन्नात्महितं धीमान, पातिवेश्यकतां त्यजन् ॥३॥ भूर्ख, अधर्मी, पाखंडी, धर्मसे पतित, चोर, रोगी, क्रोधी, अन्त्यज, ( कोली, घाघरी आदि हलकी जाति वाले तथा चांडाल) उद्धत, गुरुकी शय्या पर गमन करने वाला, वैरी, स्वामी द्रोही, लोभी, ऋषि, स्त्री, बालहत्या करनेवाला, जिसे अपने हितको चाहना हो उसे उपरोक्त लिखी व्यक्तियोंके पड़ोसमें निवास नहीं करना चाहिये । .. कुशील आदिकोंके पड़ोसमें रहनेसे सचमुच ही उनके हलके वचन सुननेसे और उनकी खराब चेष्टायें देखनेसे स्वाभाविक ही अच्छे गुणवानके गुणोंकी भी हानि होती है। अच्छे पड़ोसमें रहनेसे पड़ोसनोंने मिल कर खीरकी सामग्री तय्यार कर दी ऐसे संगमें शालीभद्र के जीवको महा लाभकारी फल हुआ।और बुरे पड़ोसके प्रभावसे पर्वके दिन पहिलेसे ही बहूने मुनिको दिया हुआ अग्रपिंड से भी पड़ोसनों द्वारा भरमाई हुई सोमभट्ट की भार्याका दृष्टांत समझना। - सुस्थान घर वह कहा जाता है कि जिसमें जमीनमें शल्य, भक्ष्म, क्षात्रादिक दोष न हों। याने वास्तुक शास्त्रमें बतलाये हुए दोषोंसे रहित हो। ऐसी जमीनमें वहुल दुर्वा, प्रवाल, कुश, स्तंभ, प्रशस्त, वर्णगंध, मृत्तिक्ता सुस्वादु जल, निधान वगैरह निकलें वहां पर बनाए हुए घरमें निवास करना। इसलिये बास्तुक शास्त्र में कहा है कि शीतस्पर्णोष्ण काले या, त्युष्ण स्पर्शा हिमागमे । वर्षासु चोभयस्पर्शा, सा शुभा सर्वदेहिनां ॥१॥ उष्ण कालमें जिसका शीत स्पर्श हो, शीतकाल में जिसका उष्ण स्पर्श हो, चातुर्मास में शीतोष्ण स्पर्श हो ऐसी जमीन सब प्राणिओं के लिये शुभ जानना। हस्तपात्र खनित्वादौ, पूरिता तेन पांथुना। श्रेष्टा समधिके पासो, हीना हीने समे सपा ॥२॥ मात्र एक हाथ जमीन को पहिले से खोद कर उसमें से निकली हुई मट्टीसे फिर उस जमीन को समान रीतिसे पूर्ण कर देते हुए यदि उसमें की धूल घटे तो हीन, बराबर हो जाय तो समान, और यदि बढ़ जाय तो श्रेष्ठ जमीन समझना। पदगति शतं यावचाभः पूर्णा न शुष्यति। सोत्तमे कांगुला हीना, मध्यमा तत्पराधमा ॥३॥ जमीन में पानी भरके सौ कदम चले उतनी देरमें यदि वह पानी न सूखे तो उत्तम जानना, एक अंगुल पानी सूख जाय तो मध्यम और अधिक सुख जाय तो जघन्य समझना।

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