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श्राद्धविधि प्रकरण
३०७ निर्बुद्धिः प्रौढकार्यार्थी, विविक्तरसिको वणिक् ॥३॥ ५ जुवा खेलनेसे मुझे अवश्य धनकी प्राप्ति होगी ऐसी आशा रख कर बैठा रहे । ६ खेती या व्यापार में मुझे धन प्राप्त होगा या नहीं इस शंकासे निरुद्यमी हो बैठा रहे । ७ निर्बुद्धि होने पर बड़े कार्यमें प्रवृत्ति करे। ८ व्यापारी होने पर अनेक प्रकारके भंगारादिक रसमें ललचा जाय ।
ऋणेन स्थावरक्रेता, स्थविरः कन्यकावरः
ब्याख्याता चाश्रुते ग्रन्थे, प्रत्यक्षार्थप्यपन्हवी ॥४॥ ६ करज लेकर स्थावर मिलकत करावे या खरीद करे। १० बृद्धावस्था हुये बाद छोटीसी कन्याका पति बने । ११ नहीं सुने हुये ग्रन्थों की व्याख्या करे। १२ प्रत्यक्ष अर्थो को दबावे। . चपलापतिरीर्षालु, शक्तशत्र रशंकितः,
दत्वा धनान्यनुशायी, कविना हठपाठकः ॥५॥ १३ धनवान होकर दूसरोंकी ईर्षा करे । १४ समर्थ शत्रुका भय न रख्खे । १५ धन दिये बाद पश्चात्ताप करे १६ हटसे पंडितके सार्थ करार करे।
अप्रस्तावे पटुर्वक्ता, प्रस्तावे मौनकारक,
लाभकाले कलहकुन्मन्युमान भोजनक्षणे ॥६॥ १७ समय बिना उचित बचन बोले। १८ अवसरके समय बोलनेके बचन न बोल सके । १६ लोभके समय क्लेश करे । २० भोजन के समय अभिमान रख्खे ।
क्रीणार्थः स्थूललाभेन, लोकोक्तो लिकष्ट संकृतः।
पुत्राधीने धने दीनः पत्नीपनार्थ याचकः ॥७॥ २१ अधिक धन मिलनेको आशासे अपने पास हुये धनको भी चारों तरफ फैला दे। २२ लोगोंकी प्रशंसासे आगे पढ़नेका अभ्यास बन्द रख्खे । २३ पुत्रको प्रथमसे सब धन स्वाधीन किये बाद उदास बने । २५ ससुरालकी तरफसे मदत मांगे।
भायखेदात्कृतोद्वाहा पुत्रकोपात्त दन्तका)
____ कामुकरपद्धया दाता गर्नवान्मार्गणोक्तिभिः॥८॥ २५ स्त्रीके साथ कलह होनेसे दूसरी शादी करे । २६ पुत्र पर क्रोध आनेसे उसे मारडाले । २७ कामी पुरुषोंकी ईर्षासे अपना धन वेश्या आदि पतित स्त्रियोंमें उड़ावे। २८ यावकों की प्रशंसासे अभिमान रख्खे ।
धीदान हितश्रोबा, कुलोत्सेकादसेवकः
दत्वार्थान्दुर्लभान्कामी, दत्वा सुमालप्क पर्गगः ॥६॥ २६ मैं बुद्धिमान हू', इस विवारसे अपने हितकी भी बात न सुने। ३० कुलके मदसे दूसरेकी नोकरी न करे ।३१ दुर्लभ पदार्थ देकर वापिस मांगे। ३२ दाम लिये बाद चोर मार्गसे चले।
. लुन्धे भुभूजि लाभार्थी, न्यायार्थी दुष्ट शास्तरिः