Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 395
________________ श्राद्धविधि प्रकरण पूर्वक पोषधशाला के अन्दर और बाहर २ कायाके बाहर उच्चार भूमिके पडिलेहे। "आघाडे आसन्ने उच्चारे पासमणे अहिआसे" इत्यादिक बारह २ मांडले करे । फिर प्रतिक्रमण करके यदि साधुका योग हो तो उसकी वैयावश्च करे, खमासमण देकर स्वाध्याय करे। जबतक पोरसी पूरी हो तबतक स्वाध्याय फरे । फिर खमासमण देकर "इच्छा कारेण संदिसह भगवन् बहु पडिपुन्ना पोरसी राइसंथारए ठामि” हे भगवन् बहुपडिपुन्ना पोरसी हुइ है अतः संथारा विधि पढाओ ) फिर देव बन्दन करके शरीर चिन्ता निवारण करके शुद्ध होकर उपयोग में आने वाली तमाम उपाधि को पडिलेह कर, गोड़ोंसे ऊपर तक धोती पहिन कर संथारा करने की जगह इकहरा संथारा बिछा कर उस पर एक सूतका उत्तर पट्टा याने इकहरा सूती वस्त्र बिछा कर जहां पैर रखना हो वहांकी भूमिको प्रमार्जन करके धीरे धीरे संथारा करे फिर वायें पैरसे संथारे का स्पर्श करके मुहपत्ति पडिलेह कर "निस्सीहि" शब्दको तीन दफा बोलकर "तपो खमासमण अणुजाणह जिज्जिा " यों बोलता हुआ संथारे पर बैठ कर एक नवकार और एक करेमिभंते एवं तीन दफा कह कर निम्न लिखी गाथाएं पढे। अणुजाणह परमगुरु, गुणगण रहणेहिं भूसिय सरीरा बहु पडिपुन्ना पोरसी राइ संथारए ठामि ॥१॥ गुणगण रत्नसे शोभायमान शरीर वाले हे परम गुरु ! पोरसी होने आयी है और मुझे रात्रिमें संथारे पर सोना है अतः इसकी आज्ञा दो। . अणु जाणह संथारं बाहु बहाणेणं वाम पासेणं । कुक्कुडिय पाय पसरणं । अन्तरन्तु पमज्जए भूमि ॥२॥ बायां हाथ तकिये की जगह रख कर शरीर का बायां अंग दबा कर जिस तरह मुर्गी जमीन पर पैर लगाये बिना पैर पसारती है यदि कार्य पड़ा तो वैसा ही करूंगा। बीचमें निद्रामें भी यदि आवश्यकता होगी तो भूमिको प्रमार्जन करूंगा। अतः इस प्रकार के विधिके अनुसार शयन करने की मुझे आशा दो। संकोइस संडासा,उव्वदृन्तेय काय पडिलेहा । दवाइ उवमोगं, उसास निरंभणा लोए ॥३॥ पैर सकोड़ कर शरीरकी पडिलेहणा न करके द्रव्य क्षेत्र काल, भावका उपयोग दे कर इस संथारे पर सोते हुयेको मुझे यदि कदाचित् निद्रा आवेगी तो उसे श्वास रोकनेसे उच्छेद करूंगा। जहमे हुज्ज पमानो, इमस्स देहस्स इमाइ रयणीए। आहार मुवइ देह, सव्वं तिविहेण वोसइमं ॥४॥ ___मेरे अंगीकार किये हुए इस सागारी अनशनमें कदापि मेरी मृत्यु होजाय तो इस शरीर, आहार, और उपाधि इन सबको मैं त्रिकरणसे आजकी रात्रिके लिये वोसराता हूं-परित्याग करता हूं। इत्यादि गाथाओंकी भावना परिभाते हुये याने समग्र संथारा पोरसी पढ़ाये बाद नवकार का स्मरण करते हुये रजो हरणादिक से (श्रावक चरबला आदिसे) शरीरको और संथारेको ऊपरसे प्रमार्जित कर बांयें अंगको दबाकर बायां हाथ सिर नीचे रख कर शयन करे। यदि शरीर चिन्ता लघुनीति और बड़ी नीतिकी हाजत हो तो संथारेको अन्य किसीसे स्पर्श कराकर आवस्सहि कह कर प्रथमसे देखे हुये निर्जीव स्थानमें

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