Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 402
________________ श्राद्धविधि प्रकरण ३११ सचित्त वस्तु, अधिक बीज वाली वस्तु और अनन्त काय ये अनुक्रम से त्यागने योग्य हैं। विगय का तथा विगय से उत्पन्न होने वाले पदार्थों का भी परिमाण करना। अंसुअ धोरण लिप्यण, खेतख्खणणं चन्हाण दाणं च । जमा कढण मन्नस्स, खित् कज्जं च बहुभे॥१४॥ खंडण पीसण माईण, कूड सख्खई संखेवं ॥ जलझिलणन्न रंधण, उव्वठठण माईप्राणं च ॥१५॥ वस्त्र धोना या धुलवाना, लोपना या लिवाना, खेत जोतना या जुतवाना, स्नान करना या कराना, अन्यकी जू वगैरह निकालना, एवं अनेक प्रकार के जो क्षेत्रके भेद हैं उन सबका परिमाण करना। खोटने पीसने का तथा असत्य साक्षी देने वगैरह का संक्षेप करना। जलमें तैरना, अन्न रांधना, उगटणा वगैरह करने का जो प्रमाण हो उसमें भी संक्षेप करना । देसावगासिम वए, पुढवी खणणेण जलस्स प्राणयणे । जल्लणस्स जालणए॥२६॥ देशावकाशिक ब्रतमें पृथ्वी खोदनेका, पानी मंगानेका, एवं रेशमी वस्त्र धुलबाने का, स्नानका, पीनेका, अग्नि जलाने का नियम धारण करना । तह दीव बोहणे वाय, बीऊणे हरिप्र छिंदणे चेव । अणिवद्ध जपणे, गुरु जणेणय अदत्तए गहण ॥१७॥ तथा दीपक प्रगट करने का, पंखा वगैरह करने का, सब्जी छेदन करनेका, गुरु जन के साथ बिना विचारे बोलनेका एवं अदत्त ग्रहण करनेका नियम धारण करना। पुरिसासण सयणीए, तह सभासण पलोयणा ईसु। ववहारेण परिमाण, दिस्सिमाण भोग परिभोगे॥१८॥ पुरुष तथा स्त्रीके आसन पर बैठने का, शय्या में सोनेका एवं स्त्री पुरुषके साथ संभाषण करनेका, नजर से देखने का, व्यापार का दिशि परिणामका एवं भोग परिभोगका परिमाण करना । तह सव्वणथ्थदडे, समाई पोसहे तिहि विभोगे। सव्वेसुवि संखेव काहं पई दिवस परिमाणः ॥१६॥ तथा सर्व अनर्थदंड में सामायिक, पोषह, अतिथिसं विभाग में, सर्व कार्योंमें प्रतिदिन सर्व प्रकारके परिमाण में संक्षेप करते रहना। खंडण पीसण रंधण, भुजण विख्खणण बथ्थ रयण च। ___ कत्तण पिंजण लोढण, धवलण लिंपणय सोहणए ॥१६॥ खोटना, दलना, पकाना, भोजन करना, देखना देखाना वस्त्र रंगवाना, कतरना, लोढना, सफेदी देना, लीपना, शोभा युक्त करना, शोधन करना, इन सबमें प्रति दिन परिमाण करते रहना चाहिए । वाहण रोहण लिख्खाइ जो भणे वाण हीण परिभोगे। निनणण। लुणण उछणा, रंधण दलणाई कम्पेन ॥२१॥

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