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श्राद्धविधि प्रकरण पिईमाई दिठिठ वंचण, जयणां निहिसुक्क पडिल विसयंमि।
दिणिबम्भर यणिवेला, परन रसेवाइ परिहारो॥६॥ पिता माताकी दृष्टि बचा कर काम करना, निधान, दाण चोरी, दूसरे की पड़ी हुई वस्तुके विषय में यतना करना, वगैरह इस प्रकार के अभिग्रह धारण करना। स्त्री पुरुष को दिनमें ब्रह्मचर्य पालन करना, यह तो अवश्य ही है। परन्तु रात्रिमें भी इतना अभिग्रह धारण करना चाहिए कि स्त्रीको परपुरुष का और पुरुष को परस्त्रीका त्याग करना । आदि शव्दसे मालूम होता है कि स्त्रीको परपुरुष और पुरुष को पर स्त्रीके साथ मैथुन की तो बात ही दूर रही परन्तु उनके प्रसंग का भी त्याग करना।
धन धनाइ नवविह, इच्छा भाणंमि नियम संखेवो।
परपेसण सन्देसय, अहगमणाई दिसिमाणे ॥७॥ धन धान्यादिक नव विध इच्छानुसार एक्खे हुए परिग्रह में भी नियम करके उसका संक्षेप करना। अन्य किसीको भेजने का, दूसरे के साथ सन्देशा कहलाने का, अधो दिशामें गमन करने वगैरह का नियम धारण करना। (पर्वमें लिये हुए व्रतसे कम करना ) यह दिशिपरिमाण नियम कहलाता है ।
न्हागराय धूवण, बिलेवणा हरण फुल तंबोलं।
धणसारागुरुकुंकुम, पोहिस मयनाहि परिमाणं॥८॥ मंजिठ लख्ख कोसुम्भ, गुलिप रागाण वथ्य परिमाणं।
रयणं वज्जेपणि, कणग रुप्यं मुत्ताईय परिमाणां ॥८॥ जम्बोर जम्ब जम्बुम, राईण नारिंग बीज पूराणां ।
. कक्कडि अखोड वायप, कविठठ टिम्बरुग्रं बिल्वाणां ॥१०॥ खज्जुर दरुख दाडिम, उत्तत्तिय नारिकेर केलाई।
चिंचिणि प्रबोर विलुम, फल चिभ्भड चिभ्भडीयं च ॥ ११ ॥ कयर करमन्दया, भोरड निम्बूध अम्बिलीणां च।
अथ्थाणं अंकुरित्र, नाणाविह फुल्ल पत्ता ॥१२॥ सचि बहुवीअं, अणन्तकायं च वज्जए कमसो।
विगई विगई गयाणं, दबा कुणई परिमाणं ॥ १३॥ स्नान करनेके जो साधन हैं जैसे कि उगटण, विलेपन, धूपन, आभरण, फूल, तांबूल, बरास, कृष्णा. गर, केशर, पोहीस, कस्तूरी वगैरह के परिमाण का नियम करना । मजीठ, लाख, कसुम्बा, गुली, इतने रंगोंसे रंगे हुए वस्त्रका परिमाण करना । तथा रत्न, वज्र, (हीरा ) मणि, सुवर्ण, चांदी, मोती बगैरह का परिमाण करना । जंबीर फल, जमरुख, जांबुन, रायण, नारंगी, बिजोरा, ककड़ी, अखरोट वायम नामक फल, कैत, टिम्बरू फल, बेल फल, खजूर, द्राक्ष, अनार, छुवारे, नारियल, केले, बेर, जंगली बेर, खरबूजे, तरबूज, खीरा, कैर, करवन्दा, निंबू, इमली, अंकुरित नाना प्रकारके फल फूल पत्र वगैरह के अचार वगैरह का परिमाण करना।