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श्राद्धविधि प्रकरण जो मनुष्य उपरोक्त पदार्थ को त्यागता है वह कुरूपत्व प्राप्त नहीं करता। तथा कहीं भो दुर्भागी पन प्राप्त नहीं करता । हे राजन् ! ताम्बूल के परित्याग से भोगी पन और लावण्यता प्राप्त होती है।
फलपत्रादि शाकं च, सक्त्वा पुत्रधनान्वितम्।
__ मधुरस्वरो भवेत् राजन्, नरो वै गुड वर्जनात् ॥४॥ फल पत्रादि के शाकको त्यागने से मनुष्य पुत्र और धन सहित होता है । तथा हे राजन् ! गुड़का त्याग करने से मधुर स्वरी मीठा बोलने वाला होता है। लभते सन्ततिर्दीर्घा, तापा पक्वस्य वनात् । भूमौ स्त्रस्त रसायी च, विष्णु रनुचरो भवेत् ॥५॥
तापसे न पके हुए खाद्य पदार्थ को त्यागने से मनुष्य बहुत ही लम्बी पुत्र पौत्रादिक सन्तति को प्राप्त करता है। जो मनुष्य चारपाई, पल्यंक विना भूमि पर शयन करता है वह विष्णु का सेवक बनता है। दधिदुग्ध परित्यागाव, गो लोकं लभते नरः । यामद्वयजल त्यागात्, न रोगः परिभूयते ॥६॥
दही दूधका त्याग करने से देवलोक को प्राप्त करता है। दो पहर तक पाणीके त्यागने से मनुष्य रोगसे पीडित नहीं होता।
एकांतरोपवासी च, ब्रह्मलोके महीयते । धारणानखलोपानां, गंगास्नानं दिने दिने ॥७॥
बीचमें एक दिन छोड़ कर उपवास करने से देवलोक में पूजा पात्र होता है। और नख व लोमके बढ़ाने में (पंच केश रखने से नख बढ़ाने से प्रति दिन गंगा स्नानके फलको प्राप्त होता है।
परान्नं वर्जयेद्यस्तु, तस्य पुण्यपनन्तकम् ।
___ भुजते केवलं पापं, यो मौनेन न भुजति ॥८॥ जो मनुष्य दूसरे का अन्न खाना त्यागता है उसे अनन्त पुण्य प्राप्त होता है । जो मनुष्य मौन धारण करके भोजन नहीं करता वह केवल पापको हो भोगता है।
उपवासस्य नियम, सर्वदा पौन भोजनम् ।तस्मात्सर्वप्रयत्नेन, चतुर्मासे व्रती भवेत् ॥ ६॥
उपवास का नियम रखना, और सदैव मौन रह कर भोजन करना, तदर्थ चातुर्मास में विशेषतः उद्यम करना, चाहिए । इत्यादि भविष्योत्तर पुराण में कहा हुआ है।
पंचम प्रकाश
॥ वर्षे कृत्य ।। - पूर्वोक्त चातुर्मासिक कृत्य कहा । अब बारवी गाथाके उत्तरार्धसे एकादश द्वारसे वर्ष कृत्य बतलाते हैं ।
(बारहवीं मूल गाथाका उत्तरार्ध भाग तथा तेरहवीं गाथा ) १ पई वरिस संधच्चण । साहम्मि भत्तिअ । ३ तत्ततिग ॥ १२॥