Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 411
________________ ४०० श्राद्धविधि प्रकरण भी तीर्थ कही जाती है। ऐसे तीर्थों पर समकित की शुद्धिके लिए और जैनशासन की प्रभावनार्थ विधि पूर्वक यात्रा करने जाना इसे तीर्थयात्रा कहते हैं। जब तक यात्राके कार्यमें प्रवर्तता हो तब तक इतनी बातें अवश्य अंगीकार करनी चाहिये । एक दफा भोजन करना, सचित्त वस्तुका परित्याग, वारपायी पलङ्गको छोडकर जमीन पर शयन करना, ब्रह्मचर्य पालन करना वगैरह अभिग्रह धारण करना। पालकी उत्तम घोडा, रथ, गाड़ी, वगैरह की समग्र सामग्री होने पर भी यात्रालुको एवं विशेष श्रद्धावान श्रावकको भी शक्त्यानुसार पैदल चल कर जाना उचित हैं। इसलिये कहा जाता है कि एकाहारी दर्शनधारी, यात्रासु भूशयनकारी। सचित्तपरिहारी पदचारी ब्रह्मचारी च॥१॥ एक दफे भोजन करने वाला सम्यक्त्व में दृढ रहने वाला, जमीन पर सोने वाला सचित्त वस्तुका त्याग करने वाला पैदल चलने वाला ब्रह्मचर्य पालने वाला ये छह (छहरी ) यात्रामें जरूर पालनी चाहिये । लौकिकमें भी कहा है कि यान धर्मफलं हन्ति तुरीयाशत्रुपानहौ । तृतीयाशमवपनं, सर्वं हन्ति प्रतिग्रहः ॥२॥ वाहन ऊपर बैठने से यात्राका आधा फल नष्ट होजाता है । यात्रा समय पैरोंमें जूता पहनने से यात्राके फलका पौनाभाग नष्ट होजाता है। हजामत करानेसे तृतीयांश फल नष्ट होता है और दूसरोंका भोजन करनेसे यात्राका तमाम फल चला जाता है। एकभक्ताशना भाव्य, तथा स्थंडिलशायिना। तीर्थानि गच्छता नित्य,मप्यतौ ब्रह्मचारिणा॥ इसीलिये तीर्थयात्रा करने वालेको एक ही दफा भोजन करना चाहिये। भूमिपर ही शयन करना चाहिये और निरन्तर ब्रह्मचारी रहना चाहिये। फिर यथा योग्य राजाके समक्ष नजराना रख कर उसे सन्तोषित कर तथा उसकी आज्ञा लेकर यथाशक्ति सडमें ले जानेके लिये कितने एक मन्दिर साथमें ले कर साधर्मिक श्रावकों एवं सगे सम्बन्धियों को बिनय बहुमान से बुलावे। गुरु महाराज को भक्ति पूर्वक निमन्त्रण करे, जीवदया ( अमारी) पलावे, मंदिरोंमें बड़ी पूजा वगैरह महोत्सव करावे, जिस यात्रोके पास खाना न हो उसे खाना दे, जिसके पास पैसा न हो उसे खर्च दे, वाहन न हो उसे वाहन दे, जो निराधार हों उन्हें धन देकर साधार वनावे, यात्रियों को वच. नसे प्रसन्न रक्खे, जिसे जो चाहियेगा उसे वह दिया जावेगा ऐसी सार्थवाह के समान उद्घोषणा करे। निरुत्साही को यात्रा करनेके लिये उत्साहित करे, विशेष आडम्बर द्वारा सर्व प्रकारकी तैयारी करे। इस प्रकार आवश्यकानुसार सर्व सामग्री साथ लेकर शुभ निमित्तादिक से उत्साहित हो शुभ मुहूर्तमें प्रस्थान मंगल करे । वहां पर सर्वश्रावक समुदाय को इकट्ठा करके भोजन करावे और उन्हें तांबूलादिक दे। पंचांग वस्त्र रेशमी वस्त्र, आभूषणादिक से उन्हें सत्कारित करे । अच्छे प्रतिष्ठित, धार्मिष्ठ, पूज्य, भाग्यशाली, पुरुषोंको पधराकर संघपति तिलक करावै । संघाधिपति होकर संघपूजा का महोत्सव करे और दूसरेके पास भी यथो. वित कृत्य करावे । फिर संघपति की व्यवस्था रखनेवालों की स्थापना करे । आगे आनेवाले मुकाम, उतरने के

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