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श्राद्धविधि प्रकरण संसोख्खंति पवुचई, दिठठे तं होई सव्वजीवाण।
तो संभवे जिणेसो, सव्वे विहु संभवा एवं ॥१॥ जिसे देखनेसे सब जीवोंको सुख हो उसे ही सुख कहते हैं। इसलिये संभवनाथ जिनेश्वर के प्रभावसे सर्व प्रकारके सुखका संभव होता है। भणंति भुवण गुरुणो, न वरं अन्न पि कारणं अथिय ।
सावथ्थी नयरीए, कयाइ कालस्स दोसेण ॥२॥ जाए दुभिरुखभरे, दृथ्थी भूए जणे समथ्थेवि ॥
अवयरिभो एस जिणो; सेणादे वीइ उअरभि ॥३॥ सयपेवागम्भ सुराहिवेण संपृइमा तो जणणी ।
वध्धाविप्राय भुवणिक भाणु तणयस्स लाभेग ॥ ४॥ तविग्रहं चियसहसा, सपथ्थ सथ्येहिं धन्नपुन्नेहि।
सव्वस्तो इत्तेहि, सुहं सुभिख्खं तहि जयं ॥॥॥ संभविप्राईजम्हा, समत्तसइ संभवे तस्य ।।
तो संभवोतिनामं पइठि जणाणि जणएहिं ॥६॥ (इन गाथाओंको अर्थ उपरोक्त संभवनाथ स्वामीके संक्षिप्त दृष्टान्तमें समा गया है )
शाह जगसिंह देवगिरी नगरमें ( मांडवगढ़) शाह जगसिंह अपने समान संपदा वाले स्वयं बनाये हुये तोनसौ साठ वणिक पुत्रोंसे बहत्तर हजार (७२००० ) रुपियोंका एकमें खर्च हो इस प्रकारके प्रति दिन एकेकके पाससे साधर्मिक वात्सल्य कराता था। इससे प्रति वर्ष उसके तीनसौ साठ साधर्मिक वात्सल्य होते थे। इसो प्रकार आभू संघपति ने भी अपनी लक्ष्मीका सद्व्यय किया था। थरादगाम में श्री मालवंश में उत्पन्न होने वाले आभू संघपति ने अपनी संपदा द्वारा तीनसौ साठ अपने साधर्मों भाइयों को अपने समान सम्पत्तिवान बनाया था।
कमसे कम श्रावकको एक दफा वर्षमें यात्रा अवश्य करनी चाहिये । यात्रा तीन प्रकारकी कही है। अष्टान्हिकाभिधापेका, रथयात्रापयापराम् । तृतीया तीर्थयात्रा चेत्माहुर्यात्रा त्रिधा बुधाः॥१॥
अठाई यात्रा, रथयात्रा, तथा तीर्थयात्रा, इस तरह शास्त्रकारों ने तीन प्रकार की यात्रा बतलाई है। उनमें अठाइयों का स्वरूप प्रथम कहा हो गया है। उन अठाइयोंमें विस्तार सहित सर्व चैत्य परिपाटी करना याने शहरके तमाम मन्दिरोंमें दर्शन करने जाना। रथयात्रा तो प्रसिद्ध ही है। तीर्थ याने शत्रुञ्जय, गिरनार आदि एवं तीर्थंकरों के जन्म कल्याणक दीक्षा कल्याणक, केवलज्ञान कल्याणक, निर्वाण कल्याणक, और बहुतसे जीवोंको शुभ भावना सम्पादन कराने तथा भवरूपी समुद्रसे तारनेके कारण तीथंकरों की बिहार भूमि