Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 403
________________ श्राद्धविधि प्रकरण संबरण कायव्यं, जह संभव मणदिणतहा पढणे । जिण भगा दंसणे सुणाणा गणणु जिण भवण किच्छ म ॥२२॥ वाहन, रथ वगैरह आरोहण, सवारी वगैरह करना, लीख वगरह देखना, जूता पहिरना, परिभोग करना, क्षेत्र वोना एवं काटना, ऊपरसे धान काटना, रांधना, पीसना, दलना आदि शब्दसे बगैरह कार्योंके अनुक्रमसे प्रतिदिन पूर्णमें किये हुए प्रत्याख्यान से कम करते रहना। एवलिखने पढ़ने में, जिनेश्वर भगवान के मंदिर संबन्धी कार्योंमें धार्मिक स्थानोंको सुधरवाने के कोंमें तथा सार संभाल करने के कार्योंमें उद्यम भठठमी चउद्दसीसु कल्याण तिहिसु तव विसेसेसु । काहामि उज्जम मह, धम्मथ्थं बरिस मझझपि ॥२३॥ बर्ष भरमें जो अष्टमो, चतुर्दशी, कल्याणक तिथिओं में तप विशेष किया हुआ हो उसमें धर्म प्रभावना निमित्त उजमणा आदिका महोत्सव करना। धम्पथ्थं मुहपती, जल छगा। भोसहाई दाणां च । साहम्मिन बच्छवजह सजिए गुरु विणाप्रोम ॥२४॥ धर्मके लिये मुहपत्तियें देना, पानी छानने के छाणे देना, रोगिओंके लिये औषधादिक वात्सल्य करना, यथा शक्ति गुरु का बिनय करना । मासे मासे सामाइमंच, वरिसंमि पोसहं तु तहा । काहा मि स सचीए, अतिहिण सविभागच ॥२५॥ हरेक महीने में मैं इतने सामायिक करूगा, एवं वर्ष में इतने पोषसह करूंगा, तथा यथाशक्ति बर्षमें इतने अतिथि संबिभाग करूगा ऐसा नियम धारण करे। "चौमासी नियम पर बिजय श्रीकुमार का दृष्यन्त" विजयपुर नगरमें विजयसेन राजा राज्य करता था। उसके बहुत से पुत्र थे परन्तु उन सबमें विजय श्रीकुमार को राज्य के योग्य समझ कर शंका पड़ने से उसे कोई अन्य राजकुमार मार न डाले, इस धारणा से राजा उसे विशेष सन्मान न देता था इससे षिजय श्रीकुमार को मनमें बड़ा दुःख होता था। पादाहतं यदुत्थाय, मुर्धानमधि रोहति स्वस्थाने वापपानेऽपि देहिनः स्तद्ववर रजः॥ ___ जो अपमान करनेसे भी अपने स्थान को नहीं छोड़ते ऐसे पुरुषों से धूल भी अच्छी है कि जो पैरोंसे आहत होने पर वहाँसे उड़ कर उसके मस्तक पर चढ बैठती है। इस युक्ति पूर्व क मुझे यहां रहने से क्या लाभ है ? इस लिये मुझे किसी देशान्तर में चले जाना चाहिए। विजयश्री ने अपने मनमें स्वस्थान छोड़नेका निश्चय किया । नीतिमें कहा है किनिग्गंद ण गिहामो, जो न निभई पुहई मंडल मसेस। अच्छेरथ सपरम्भ, सो पुरुसो कूव मंडुक्को ॥१॥

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