Book Title: Shraddh Vidhi Prakaran
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Aatmtilak Granth Society

View full book text
Previous | Next

Page 394
________________ تحفه श्राद्धविधि प्रकरण हाओजी" यों कहे। फिर 'इच्छ' कहकर स्थापनाचार्य की पडिलेहन करके स्थापकर खमासमण पूर्वक उपधि मुहपत्ति पडिलेह कर दो खमासमण देने पूर्वक 'उपधि संदिसाहु' 'उपधिपडिलेहू' यों आदेश मांगकर वस्त्र, कम्बल प्रमुखकी प्रतिलेखना करे, फिर पोषधशाला की प्रमार्जना करके कचरा यत्न पूर्वक उठाकर योग्य स्थान पर परठबके-डाल कर ईर्यावहि करे। फिर गमनागमन की आलोचना करके खमासमण पूर्वक मंडलमें बैठकर साधुके समान सज्झाय करे। फिर जबतक पौनी, पोरसी हो तब तक पठन पाठन करे, पुस्तक पढे । फिर खमासमण पूर्वक मुंहपतिकी पडिलेहन करके जबतक कालवेला हो तबतक सज्झाय करता रहे। यदि देवबन्दन करना हो तो 'आवस्सहि' कहकर मन्दिर जाय और वहां देव बन्दन करे। यदि पारण करना हो-भोजन करना हो तो प्रत्याख्यान पूरा हुये बाद खमासमण पूर्वक मुंहपत्ति पडिलेह कर खमासमण पूर्वक यों कहे कि "पोरसि परामो' अथवा पुरिमढ चोवीहार या तीविहार जो किया हो सो कहे ।” नीवि करके, आयम्बिल करके, एकासन करके, पान हार करके या जो वेला हो उस बेलासे फिर देव बन्दन करके, सन्झाय करके, घर जाकर यदि सौ हाथसे वाहिर गया हो तो ईर्यावहि पूर्वक खमासमण आलो कर यथासम्भब अतिथि संबिभाग ब्रतको स्पर्श कर निश्चल आसनसे बैठकर हाथ, पैर, मुख, पडि. लेह कर, एक नवकार पढकर, रागद्वेष रहित होकर अचित्त आहार करे। पहले कहे हुये अपने स्वजन संबन्धि द्वारा पोषधशाला में लाये हुये अन्नादिको जीमें (एकासनादिक आहार करे) परन्तु भिक्षा मांगने न जाय फिर पोषधशाला में जाकर ईर्यावहि पूर्वक देव बन्दन करके बन्दना देकर तीविहार या चौविहार का प्रत्यख्यान करे । यदि शरीर चिन्ता दूर करने का विचार हो (टट्टी जाना हो तो,) "आव्यवस्सहि” कहकर साधुके समान उपयोगवान् होकर निर्जीव जगह जाकर विधि पूर्वक बड़ी नीति या लघु नीतिको वोसरा कर शरीर शुद्ध करके पोषधशाला में आकर ईर्यावहि पूर्वक खमासमण देकर कहे कि "इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् गमनागमन आलोऊ” "इच्छं' कहकर उपाश्रय से 'आवस्सहि' कथन पूर्वक दक्षिण दिशामें जाकर सर्व दिशाओंकी तरफ अवलोकन करके "अणुजाणह जस्सग्गो” (जो क्षेत्राधिपति हो सो आज्ञा दो) ऐसा कह कर भूमि प्रमार्जन करके बड़ी नीति या लघु नीति करके उसे वुसरा कर पोषधशाला में प्रवेश करे। फिर "आते जाते हुए जो विराधना हुई हो तत्सम्बन्धी पाप मिथ्या होवो" ऐसा कहे। फिर समझाय करे यावत् पिछले प्रहर तक । फिर आदेश मांग कर पडिलेहण करे। फिर दूसरा खमासमण देकर "पोषहशाला को प्रमार्जन करू" यों कह कर श्रावक अपनी मुहपत्ति, कटासना, धोती, आदिकी प्रति लेखना करे। श्राविका भी मुहपत्ति, कटासना, साडी, कंचुक ओढना वगैरह वस्त्र की पडिलेहना करे । फिर स्थापनाचार्य की प्रति. लेखना करके और पोषधशाला की प्रमार्जना करके खमासमण पूर्वक उपधी, मुहपत्ति, पडिलेह कर, खमा. समण देकर मंडलो में गोड़ोंके बल बैठ कर समझाय करे। फिर दो बन्दना देकर प्रत्याख्यान करे। फिर दो खमासमण पूर्वक "उपधी संदिसाउ" "उपधि पडिलेऊ" यों कह कर वस्त्र कम्बलादि की प्रतिलेखना करे। जो उपवासी हो वह पहिले सर्व उपाधि की प्रतिलेखना करके फिर पहिनी हुई धोतीकी प्रतिलेखना करे। श्राविका प्रातः समय के अनुसार अपनी सब उपाधि की पडिलेहण करे। संध्याके समय भी खमासमण

Loading...

Page Navigation
1 ... 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460