________________
३५८
श्राद्धविधि प्रकरण
दूसरोंको श्रवण कराना, उसे धर्मकथा कहते हैं । ५ मनमें ही सूत्र अर्थका वारंवार अभ्यास करते रहनाउसका विचार करते रहना उसे अनुप्रेक्षा कहते हैं। यहां पर शास्त्र के रहस्यको जानने वाले पुरुषोंके पास पांच प्रकारकी स्वाध्याय करना बतलाया है सो विशेष कृत्यतया समझना । और वह विशेष गुण हेतु हैं । कहा है कि:
सम्झाएण पसथ्यं भाणं जाणई सव्व परमथ्यं;
सम्झाए वढ्ढतो, खणे खो जाई वेरम्गं ॥ १० ॥
स्वाध्याय द्वारा प्रशस्त ध्यान होता है, सर्व परमार्थ को जानता है, स्वाध्यायमें प्रवर्त्तन से प्राणी क्षण क्षण वैराग्य भावको प्राप्त करता है ।
हमने ( टीकाकारने ) पांच प्रकारके स्वाध्याय पर आचारप्रदीप ग्रंथ में दृष्टान्त वगैरह दिये हैं इसलिये यहां पर दृष्टान्त आदि नहीं दिये, यह मूल ग्रंथकी आठवी गाथाका अर्थ समाप्त हुआ ।
"मूल गाथ”
संझाई जिणपुणरवि । पूअई पडिक्कमड़ कुणई तहविहिणा ॥ विस्समणं सझायं । गिहंगओ तो कहइ धम्मं ॥ ९ ॥
उस्सग्गेणं तु सढो, सचिशाहार वज्जयो; इक्कास णग भोइन, बंभयारी तद्देवय ॥ १ ॥
उत्सर्ग से श्रावकको एक ही दफा भोजन करना चाहिये; इसलिये कहा है कि, उत्सर्ग मार्गसे श्रावक चित्त आहारका त्यागी होता है और एकही दफा भोजन करता है एवं ब्रह्मचारी होता है ।
जिस श्रावकका एक दफा भोजन करनेसे निर्वाह न हो उसे दिनके पिछले आठवें भागमें ( लगभग चार घड़ी दिन रहे उस वक्त ) खाना शुरू करके दो घड़ी दिन बाकी रहे उस वक्त समाप्त कर लेना चाहिये । क्योंकि सन्ध्या समय याने एक घड़ी दिन रहे उस वक्त भोजन करनेसे रात्रिभोजन का दोष लगता है, देरीसे और रात्रिभोजन करनेसे अनेक दोष उत्पन्न होते हैं, इसका स्वरूप अर्थदीपिका वृत्तिसे जान लेना । भोजन किये बाद यथाशक्ति चोतिहार, विविहार, दुविहार, दिवसचरिम, जितना दिन बाकी रहा हो वहांसे लेकर दूसरे दिन सूर्य उदय तक प्रत्याख्यान करना । मुख्य वृत्तिसे तो कितनाक दिन बाकी रहने पर भी प्रत्याख्यान करना चाहिये और यदि वैसा न बन सके तो रात्रिके समय भी प्रत्याख्यान कर लेना चाहिये ।
यदि यहां पर कोई यह शंका करे कि दिवस चरिम प्रत्याख्यान करना निष्फल है । क्योंकि दिवस चरम तो एकासनादि के प्रत्याख्यान में ही भोग लिया जाता है। इस बातका यह समाधान है कि एकासन प्रत्याख्यान के आठ आगार हैं, और दिवसचरिम प्रत्याख्यान के चार आगार हैं; इसलिये वह करना फलदायक है। क्योंकि आगारका संक्षेप करना ही सबसे बड़ा लाभ है।
जिसने रात्रिभोजन का निषेध किया है उस श्रावकको भी कितना एक दिन बाकी रहने पर दिवस