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श्राद्धविधि प्रकरण दोष वर्जित कायोत्सर्ग करे। उस कायोत्सर्ग में यथा ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तापाचार, वीर्शचार, ये पांच आचार हैं । क्रमसे दिन में किये हुये अतिचार को हृदय में धारण करे, फिर 'णमो अरिहंताणं' पदको कह कर कायोत्सर्ग पूर्ण करके, लोगस्स, दंडक पढे । पंडासा प्रमार्जना करके, दूसरी जगह अपने दोनों हाथों को न लगाते हुये नीचे बैठ कर पञ्चीस अंगकी और पच्चीस कायाकी एवं मुहपत्ति की पचास बोल सहित प्रति लेखना करे । उठ कर विनय सहित बैठ कर, बत्तीस दोष रहित, आवश्यक के पच्चीस दोषसे विशुद्ध विधि पूर्वक बन्दना करे । अब सम्यक् प्रकार से अंग नमा कर हाथमें विधि पूर्वक मुँहपत्ति और रजोहरन रख कर यथा' नुक्रम से गुरुके पास शुद्ध होकर अतिवार का चिन्तवन करे। फिर सावधान तया नीचे बैठ कर 'करेमि भन्ते' प्रमुख कहकर बन्दिता सूत्र पढ़। 'प्रभुठिोपि वाराहणाये' यहांसे लेकर शेष खड़ा होकर पढे। फिर वन्दना देकर तीन दफा पांच प्रमुख साधुको खमावे, फिर वन्दना देकर 'आयरिअ उवमझाए' आदि तीन गाथायें पढे । फिर 'करेमि भन्ते सामाइ' आदि कह कर काउसग्ग के सूत्र उच्चारन कर खड़ा रह कर पूर्ववत् काउसग्ग करे। यहां पर चारित्राचार के अतिचार की विशुद्धि के लिये दो लोगस्स का कायोत्सर्ग करे । विधि पूर्वक काउस्सग पार कर सम्यक्त्व की विशुद्धि के लिये एक लोगस्स पढे एवं 'सव्वलोए अरिहन्त चेइयाणं' कह कर पुनः कायोत्सग करे । पुनः शुद्ध सम्यक्त्वी हो कर एक लोगस्स का कायोत्सर्ग पूर्ण करके श्रुतज्ञान की शुद्धिके लिये 'पुख्खर वद्धि व?' पढे। फिर पच्चीस श्वासोश्वास प्रमाण काउस्सग करके विधि पूर्वक पारे, फिर सकल कुशलानुबन्धी क्रियाके फल रूप 'सिद्धाणं बुद्धाणं' पढे। अब श्रुतसंपदा बढाने के लिए श्रुतदेवता का काउस्सग करे, उसमें एक नवकार का चिन्तन करे। पूर्ण होने पर श्रुतदेवता की स्तुति की एक गाथा पढ़े, इसी प्रकार क्षेत्रदेवी का काउसग्ग करके एक गाथा वाली थोय-स्तुति कहे, फिर एक नवकार पढ कर संडासा प्रमाणन करके नीचे बैठ जाय । पहले समान ही विधि पूर्वक मुँहपत्ति पडिलेह कर गुरुको बन्दना दे कर 'इच्छामो अणुसही' कह कर ऊंचा गोड़ा रख कर बैठे। फिर गुरुकी स्तुति पढ़े, फिर वर्धमान अक्षरों से और उच्च स्वरसे श्री वर्धमान स्वामीकी स्तुति पढ़े और फिर शकस्तव कह कर 'देवसिय पायच्छित्त' काउसग्ग करे।
____ इस प्रकार जैसे देवसि प्रतिक्रमण का बिधि कहा वैसे ही राइका भी समझ लेना, परन्तु उसमें इतना विशेष है कि पहले मिच्छामि दुक्कडं देकर, सव सवि कह कर फिर शकस्तव कहना। फिर उठ कर विधि पूर्वक कायोत्सर्ग करना, फिर एक लोगस्स पढना, दर्शन शुद्धिके लिये पुनरपि वैसा ही कायोत्सग करना । फिर सिद्धस्तव-"सिद्धाणं बुद्धाणं' कह कर, संडासा प्रमार्जन करके नीचे बैठना। पहले मुखपत्ति की प्रतिलेखना करना, दो बन्दना देना, 'राइयं आलोयेमि,' यह सूत्र पढ़ कर फिर प्रतिक्रमण पढ़े। (बन्दिता सूत्र पढ़े ) फिर बन्दना, अभुठ्ठियो, दो बन्दना देकर, आयरिय उवमझाय की तीन गाथायें पढ़े, फिर कायोत्सर्ग करे।
उस कायोत्सर्ग में इस प्रकारका चिंतन करे कि जिससे मेरे संयमयोग में हानि न हो मैं वैसा तप अंगी. कार करू। जैसे कि छमासी तपकी शक्ति है ! परिणाम है ! शक्ति नहीं, परिणाम नहीं, इस तरह चिंत