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श्राद्धविधि प्रकरण प्रतिक्रम के पांच भेद हैं । १ देवलिक, २ रात्रिक, ३ पाक्षिक, ४ चातुर्मासिक, और ५ सांवत्सरिक । इनका काल उत्सर्ग से नीचे लिखे मुजब बतलाया है:__अद्ध निबुड्डे सूर । बिंव सुत्त कहति गीयथ्था॥
इन वयणप्पमाणणं । देवसि प्रावस्सए कालो॥ जब सूर्यका विम्ब अर्ध अस्त हो तब गीतार्थ वन्दिता सूत्र कहते हैं। इस बचन के प्रमाण से देवसिक प्रतिक्रमण का काल समझ लेना चाहिये । रात्रि प्रतिक्रमण का समय इस प्रकार है। भावस्सयस्से सपए । निदामुद्धं चयन्ति आयरिया॥
____ तहतं कुर्णति जहदिसि । पडिलेहाणं तर सूगे॥ आवश्यक के समय आवार्य निद्राकी मुद्राका परित्याग करते हैं, वैसे ही श्रावक करे याने प्रतिक्रमण पूर्ण होने पर सूर्योदय हो।
अपवाद से देवसिक प्रतिक्रमण दिनके तीसरे प्रहर से लेकर आधी रात तक किया जा सकता है। योग शास्त्र की वृत्तिमें दिनके मध्यान्ह समय से लेकर रात्रिके मध्य भाग तक देवसिक प्रतिक्रमण करने की छूट दी है। राई प्रतिक्रमण आधी रात से लेकर मध्यान्ह समय तक किया जा सकता है। कहा भी है कि:उध्घाड पोरसिंजा। राईभ मावस्स यस्स चन्नीए॥
बवहाराभिप्पाया। भणति पुण जावपुरिसड्ढ॥ ___ आधीरात से लेकर उधाड पोरसि याने सुबह की छह घड़ी तक राई प्रतिक्रमण का कार है। यह आवश्यक की चूर्णिका मत है। और व्यवहार सूत्र के अभिप्राय से दो पहर दिन चढ़े तक काल गिना जाता है।
पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक, प्रतिक्रमण का काल पक्ष या चातुर्मास और संवत्सर के अन्तमें है। पाक्षिक प्रतिक्रमण चतुर्दशी को करना या पूर्णिमा को ? इस प्रश्नका उत्तर आचार्य इस प्रकार देते हैं । चतुर्दशी के रोज करना । यदि पूर्णिमा को पाक्षिक प्रतिक्रमण होता हो तो चतुर्दशी का और पूर्णिमा का पाक्षिक उपवास करना कहा हुआ होना चाहिये, और पाक्षिक तप भी एक उपवास के बदले छट कहा हुआ होना चाहिये परन्तु वैसा नहीं कहा । उसका पाठ बतलाते हैं कि "अठ्ठं छठ्ठ चउथ्य संक्च्छर चाऊमास भख्खेसु, अठम, छठ, एक उपवास, सांवत्सरिक, चातुर्मासिक और पाक्षिक, अनुक्रमसे करना।” इस पाठको विरोध आता है । जहां चतुर्दशी ली है वहां परुखी नहीं ली, और जहां पख्खी ली है वहां चतुर्दशी नहीं ली। सो बतलाते हैं-"अठमी चउदशीस उपवास करणां, अष्टमी चतुर्दशी को उपवास करना” इस प्रकार पक्खी सूत्रकी चूर्णि में कहा है । “सो अठमी चउदसीसु उववासं करेइ, वह अष्टमी चतुर्दशी को उपवास करे" ऐसा आवश्यक की चूर्णिमें कहा है "चउथ, छठ, अट्ठम करणे अठ्ठपी पक्ख चउमास वरिसंघ अष्टमी, पक्खी, चउमासी, और वार्षिक, क्रमसे उपवास, छट, और अठम करना" ऐसा व्यवहार