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श्राविधि प्रकरण कांसीके बरतनम या खुले केश रखकर भोजन न करना। और नग्न होकर स्नान न करना। नग्न होकर न सोना, कभी भी मलीन न रहना, मलीन हाथ मस्तक को न लगाना, क्योंकि समस्त प्राण मस्तकका आश्रय करके रहते हैं। विवेकी पुरुषको अपने पुत्र या शिष्यके बिना, अन्य किसीको शिक्षा देनेके लिए न मारना पीटना। और शिष्य या पुत्रको यदि पीटनेका काम पड़े तो उसके मस्तकके बाल न पकड़ना । एवं मस्तक में प्रहार भी न करना। यदि मस्तकमें खुजली आई हो तो दोनों हाथसे न खुजाना। और बारम्बार निष्प्रयोजन मस्तक स्नान न करना। चंद्रग्रहण देखे बिना रात्रिके समय स्नान न करना, भोजन किये बाद
और गहरे पानीवाले जलाशयमें स्नान न करना। प्रिय भी असत्य वचन न बोलना, दूसरेके दोष प्रगट न करना। पतितकी कथा न सुनना, पतितके आसन पर न बैठना, पतितका मोजन न करना और पतितके साथ कुछ भी आवरण न करना। शत्रु, पतित, मदोन्मत्त, बहुत जनोंका वैरी और मूर्ख, बुद्धिवान मनुष्यको इतनोंके साथ मित्रता न करनी चाहिए, एवं इनके साथ इकला मार्ग भी नचलना चाहिये। गाड़ी, घोड़ा, ऊंट या बाहन वगैरह यदि दुष्ट हों तो उन पर न बैठना चाहिये। नदी या भेखडकी छायामें न बैठना चाहिये, जिसमें अधिक पानी हो ऐसी नदी-वगैरह के प्रवाहमें अग्रेसर होकर प्रवेश न करना चाहिये। जलते हुए घरमें प्रवेश न करना चाहिये। पवतके शिखर पर न चढना, खुले मुख जंभाई न लेना, श्वास और खासी इन दोनोंको उपाय द्वारा दूर करना। बुद्धिमान मनुष्य को रास्ता चलते समय ऊंचा, नीचा, या तिरछा न देखना चाहिये, परन्तु पृथ्वो पर गाड़ीके जुये प्रमाण दृष्टि रखकर चलना चाहिये। बुद्धिमान् मनुष्य को दूसरेका जूठो न खाना चाहिये। उष्ण काल और वर्षाऋतु छत्री रखना एवं रात्रिके समय हाथमें लकड़ी रखना चाहिये। माला और वस्त्र दूसरेके पहने हुये याने उतरे हुए न पहिनना चाहिये। स्नो पर ईर्षा रखनेसे आयुष्य क्षीण होता है। हे भरत महाराज! रात्रिके समय पानी भरना, छानना, एवं दहीके साथ सत्तु खाना, और भोजनादिक क्रिया सर्वथा वर्जनीय हैं। हे महाराज! दीर्घ आयुष्य की इच्छा रखनेवाले को मलीन दर्पण न देखना चाहिये; एवं रात्रिमें भी दर्पण न देखना । हे राजन्! कमल और कुवलय (चन्दविकासी कमल) सिवा अन्य किसी भी जातिके लाल रंगके पुष्पोंकी माला न पहनना। पंडित पुरुषको सफेद पुष्प अंगीकार करना योग्य है। सोते समय जुदा ही वस्त्र पहनना, देवपूजाके समय जुदा पहनना और सभामें जाते समय दूसरे वस्त्र पहनना। वचनकी, हाथकी और पैरकी चपलता, अतिशय भोजन, शय्याकी, दीयेकी, अधमकी और स्तंभकी छाया दूरसे ही छोड़ देना। नासिका टेढी नहीं करना, अपने हाथसे अपने या दूसरेके जूते न उठाना, सिरपर भार न उठाना, वरसात के समय दौड़ना नहीं। नई बहू को, गर्भवती को, वृद्ध, बाल, रोगी, या थके हुयेको पहले जिमाकर गृहस्थको पीछे जीमना चाहिये । हे पांडव श्रेष्ठ! अपने घरके आगनमें गाय, वाहन, वगैरह होने पर उन्हें घास, पानी दिलाये विना ही जो भोजन करता है वह केवल पाप भोजन करता है। और जो गृहांगणमें पाचकोंके खड़े हुए उन्हें दिये विना जीमता है वह भी पाप भोजन करता है। जो मनुष्य अपने घरकी वृद्धि इच्छता हो उसे बृद्ध, अपने जाति भाई, मित्र, दरिद्री जो मिलै उसे अपने घरमें रखना योग्य है। बुद्धिमान