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श्राद्धविधि प्रकरण गेहागयाण मुचिन। बसणावडिप्राण तह समुद्धरणं॥
दुहियाण दयाएसो। सव्वेसि सम्मो धम्मो॥ जो घर पर आवे उसका उचित संभालना, जिस पर कष्ट आ पड़ा हो उसे सहाय करना दुखी पर दया रखना, यह आचार सबके लिये समान ही है।
जैसा मनुष्य हो उसे वैसा ही मान देना, मीठे बचन बोलना, आसन देना, आनेका प्रयोजन पूछना, उसकी यावनाके अनुसार कार्य कर देना यह सब उचितावरण गिना जाता हैं। दुखी, अन्धे, लूले, लंगड़े रोगी वगैरह पर दया रखना, उन्होंके सुखकी योजना करना, क्योंकि जो पुरुष लौकिक कार्यके उचिता. चार को समान रीतिसे मान सन्मान देनेमें विचक्षण हो वही मनुष्य लोकोत्तर कार्यमें विवक्षण हो सकता है। जिसने लोकोत्तर पुरुषोंके उपदेश पाकर धर्मके सर्वाचार को जाना हो वही लौकिक और लोकोत्तर कार्यके सूक्ष्म भेद समझ कर यथोचित आचरण करनेमें समर्थ होता है। इसलिए कहा है कि "सबका उचित करना, गुण पर अनुराग रखना, जिन ववन पर प्रीति रखना, निर्गुणी पर भी मध्यस्थ रहना, ये समकित के लक्षण है"
मुचन्ति न मज्जाग, जलनिहिणो नाचलाविहं चलंति,
न कयावि उत्तमनरा, उचिपाचरणं विलंघति ॥” जिस तरह समुद्र अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता, पर्वत चलायमान नहीं होता वसे ही उतम पुरुष भी उचित आचारका उलंघन नहीं करता।
तेणंचित्र जयगुरुणो, तिथ्थयराविदु गिहथ्थ भावमि,
अम्मापिउण मुचिअं, अम्मुठाणाई कुव्वंति ॥ इसी कारण जगद्गुरु तीर्थंकर देव जब गृहस्थावस्था में होते हैं तव अपने माता पिताका अभ्युस्थानादिक उचित विनय करते हैं।
___ इस तरह नौ प्रकार के उचित बतलाये। अवसर पर उचित बचन बोलना भी महालाभकारी होता है।
“समयोचित वचन पर दृष्टान्त” मालिकाजुन राजाका विजय करके चौदह करोड़ रुपये, छह मुडे ( याने चौदह भार। मुडा और भार एक प्रकारके तोल हैं ) के प्रमाण सच्चे मोती, चांदीके बत्तीस बड़े घड़ श्रृंगार कोटी नामक साड़ी, माणेकका वस्त्र, विषहर छीप, (जिस छीपसे सब तरहके जहर दूर हो जाय) इतने पदार्थ तो सारभूत उसके दरबारमें थे, ये सब और कितने एक पदार्थ उसके भंडारमें लेकर जब अम्बड दीवानने आकर कुमारपाल राजाको भेट किये तब तुष्टमान हुये राजाने उसे राज पितामह नामक विरुद एक करोड़ रुपये और चौबीस जातिवान् घोड़े इनाममें दिये। यह सब सामग्री उसने घर ले जाते हुए रास्तेमें खड़े हुये यावकोंको दे दी। किसीने कुमार
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