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श्रादविधि प्रकरण यथाविधि पच्चीस आवश्यक पूर्वक द्वादश बन्दन द्वारा गुरुको बन्दन करना। इस प्रकार बन्दन से महालाभ होता है जिसके लिये शास्त्र में कहा है । कि,
.. "गुरु वन्दन विधि" नीमा गोमं खवे कम्मं । उच्चा गोमंनिन्वधए॥
सिढिलं कम्म गठितु । वंदणेण नरो करे॥ गुरु वन्दन करनेसे प्राणी नीव गोत्र खपाता है और उच्च गोत्रका बन्ध करता है एवं निकाचित कम ग्रन्थीको भेदन करके शिथिल बन्धन रूप कर डालता है।।
तिथ्ययस्तं समत्त । खाईन सत्तमीई तइआए॥
आऊ वंदणएणं वद्ध च दसारसोहेण ॥ .. श्री कृष्णने श्री नेमीनाथ स्वामीको वन्दन करके क्या किया सो बतलाते हैं । तीर्थंकर गोत्र बांधा, क्षायक सम्यक्त्व की प्राप्ति की, सातवीं नरकका वन्ध तोडकर दूसरे नरकका आयुष्य कर डाला। जैसे शीतलाचार्य को वन्दन करने आने वाले चार सगे भाणजे रात्रिमें दरवाजा बन्द हो जानेसे बाहर न जाकर दरवाजेके पास ही खडे रहे। उनमें एक जनेको गुरु वन्दनाके हर्षसे भावना भाते हुए वहां ही केवल ज्ञान उत्पन्न हुवा और तीन जने परस्पर प्रथम वन्दना करनेकी ईर्षासे ज्यों २ जल्दी उठे त्यों २ वन्दना करनेकी उतावलसे गये और द्रव्य-वन्दन किया। फिर चौथा केवली आया तब पहले तीन जनोंने गुरुसे पूछा कि, खामिन् ! हमारे चार जनोंकी वन्दनासे विशेष लाभ की प्राप्ति किसको हुई ? सीतलाचार्य ने कहा--'जो पीछे भाया उसे।" यह सुन कर तीनों जने बोले कि, ऐसा क्यों ? गुरु बोले-'इसने रात्रिके समय दरवाजेके पास भावना भाते हुए ही केवलज्ञान प्राप्त किया है । फिर तीनों जनोंने उठके चौथेको बन्दन किया। फिर उसकी भावना भाते हुए उन तीनोंको भी केवलज्ञान प्राप्त हुवा । इस तरह द्रव्य वन्दनकी अपेक्षा भाव वन्दन करनेमें भधिक लाभ है । वन्दना भाष्यमें जो तीन प्रकारकी वन्दना कही है सो नीचे मुजब है:
गुरुवंदण महति विहं । तं फिट्टा थोभ वारसावत्त॥ सिर नपणाइ सुपढमं । पुन्न खमासमण दुगिवि ॥१॥ तई अन्तु वंदण दुगे। तथ्यमिहो पाइयं सयलसंघे ॥
बीयंतु दंसणीणय । पयठियाणं च तइयंतु ॥२॥ गुरु वदना तीन प्रकार की है। पहली फैटा वन्दना, दूसरी थोभ वन्दना, और तीसरी द्वादशावर्त बंदना । मस्तक नमानेसे और दो हाथ जोड़नेसे पहली फेटा वन्दना होती है। संपूर्ण दो खमासमण देकर वन्दना करना वह दूसरी थोम वन्दना गिनी जाती है । तीसी द्वादशावर्त वन्दनाका विधि नीचे मुजब है। परन्तु यहां बंदना करनेके अधिकारी बतलाते हैं कि, पहली फेटा वंदना, सर्व श्री संघको की जाती है । दूसरी थोभ घंदना तमाम जैन साधुओंको की जाती है। तीसरी द्वादशवत्त वंदना आचार्य, उपाध्याय, वगैरह पदस्थको की जाती है।