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श्राद्धविधि प्रकरण यदि सौ काम हों तथापि अकेला ग्रामान्तर न जाना चाहिये। किसी भी इकले मनुष्यके घर अकेला न जाना एवं घरके पिछले रास्तेसे भी किसीके घर न जाना चाहिये ।
पुरानी नांवमें न बैठना चाहिये, नदीमें अकेला प्रवेश न करना चाहिये, किसी भी बुद्धिमान पुरुषको अपने सगे भाईके साथ उजाड़ मार्गके रास्तेमें अकेला न चलना चाहिये।
जिसका बड़े कष्टसे पार पाया जाय ऐसे जलके और स्थलके मार्गको एवं विकट अटवीको, गहरापन मालुम हुए विना पानीको, जहाज, गाड़ी, बांस या लंबी लाठी 'बिना उल्लंघन न करना चाहिये।
जिसमें बहुतसे क्रोधी हों, जिसमें विशेष सुखकी इच्छा रखने वाले हों, जिसमें अधिक लोभी हों, उस साथी-समूहको स्वार्थ बिगाड़ने वाला समझना। ____ जिसमें सभी आगेवानी भोगते हों, जिसमें सभी पांडित्य रखते हों, जिसमें सभी एक समान बड़ाई प्राप्त करनी चाहते हों, वह समुदाय कदापि सुख नहीं पाता ।
मरनेके स्थान पर, बांधनेके स्थान पर, जुवा खेलनेके स्थान पर, भय, या पीड़ाके स्थान पर, भंडारके स्थान पर, और स्त्रियोंके रहनेके स्थान पर, न जाना । (मालिककी आज्ञा बिना न जाना )।
मनको न रुचे ऐसे स्थान पर, श्मशानमें, सूने स्थानमें, चौराहेमें, जहां पर सूखा घास, या पुराली वगैरह पड़ी हो, वैसे स्थानमें नीचा या टेढी जगहमें, कूड़ी पर, ऊखर जमीनमें, किसी बृक्षके थड़ नीचे पर्वतके समीप, नदीके या कुवेके किनारे, राखके ढेर पर, मस्तकके बाल पड़े हों वहाँ पर, ठीकरों पर, या कोयलों पर, बुद्धिवान् पुरुषको इन पूर्वोक्त स्थानोंपर न बसना और न बैठना चाहिये।
___ जिस अवसर सम्बन्धी जो जो कृत्य हैं वे उसी अवसर पर करने योग्य है, चाहे जितना परिश्रम लगा हो तथापि वह अवसर न चूकना चाहिये । क्योंकि जो मनुष्य मेहनतसे डरता है वह अपने पराक्रम का फल प्राप्त नहीं कर सकता, इस लिये अवसर को न चूकना चाहिये ।
प्रायः मनुष्य बिना आडम्बर शोभा नहीं पा सकता, इसी लिये विशेषतः किसी भी स्थान पर बुद्धिमान पुरुषको आडम्बर न छोड़ना चाहिये।
परदेशमें विशेषतया अपने योग्य आडम्बर रखना चाहिये, और अपने धर्ममें चुस्त रहना चाहिये, इससे जहाँ जाय वहाँ आदर बहुमान पूर्वक इच्छित कार्यकी सिद्धि होनेका संभव होता है । परदेशमें यद्यपि विशेष लाभ होता है तथापि विशेष काल पर्यन्त न रहना चाहिये, क्योंकि यदि परदेशमें ही विशेष काल रहा जाय तो पीछे अपने घरकी अव्यवस्था हो जानेसे फिर कितनी एक मुसीबतें भोगनी पड़नेके दोषका सम्भव होता है। परदेशमें जो कुछ लेना या बेचना हो वह काष्ठ शेठके समान समुदाय से मिलकर ही करना उचित है। उसी कार्यमें लाभकी प्राप्ति होनेके और किसी भी प्रकारकी हरकत न आने देनेके लिये बेचना या वैसे प्रसंगमें पंच परमेष्ठी का श्री गौतम स्वामीका, स्थूल भद्रका, अभयकुमार का, और कैवन्ना प्रमुखका नाम स्मरण करके उसी ब्यापारके लाभमें से कितना एक द्रव्य देव, गुरु, धर्म, सम्बन्धी, कार्यमें खरचनेकी धारना करके प्रवृत्ति करना कि जिससे सर्व प्रकारकी सिद्धि होनेमें कुछ भी मुसीबत न भोगनी पड़े।