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Moramme
श्राद्धविधि प्रकरण
२५५ पाससे सहाय मिलनेसे स्वयं एक बड़ा व्यवहारी शेठ बना और कर्मयोग से जो मिथ्यात्वी शेठ था वह निर्धन हो गया इससे उसे पुनः धनवन्त करके अन्त में जैनधर्म का बोध देने वाले जिनदास श्रावक का दृष्टान्त समझना।
गुरुके प्रतिबोध पर निद्रादिक प्रमादमें आसक्त बने हुए अपने गुरु सेल्लक आचार्य को बोध देने वाले पंथक नामा शिष्यका दृष्टान्त समझना चाहिये ।
"पितासे माताकी विशेषता" पितासे माताका उचित इतना ही विशेष है कि स्त्रोका स्वभाव सदैव सुलभ होता है। इसलिए किसी प्रकार भी उसके चित्तको दुःख पहुंचे वैसा आचरण न करके उसका मन सदैव प्रसन्न रहे इस प्रकारका सरल दिलसे बर्ताव करना।
पितासे माता अधिक पूजनीय है। मनुस्मृति में भी कहा है कि 'उपाध्याय से दस गुना आचार्य, आवार्य से सौ गुना पिता और पितासे हजार गुनी अधिक माता मानने योग्य है।' अन्य भी नीति शास्त्रोंमें कहा है कि जब तक स्तनपान किया जाय तब तक ही पशुओंको, जब तक स्त्री न मिले तब तक ही अधम पुरुषोंको, जब तक कमानेकी या घर बसानेकी शक्ति न हो तब तक मध्यम पुरुषोंको, और जीवन पर्यंत उत्तम पुरुषोंको माता तीर्थक समान मानने योग्य है। मेरा यह पुत्र है इतने मात्रसे ही पशुको माता, धन उपार्जन करनेसे मध्यमको माता, वीरताके और लोकमें उत्तम पुरुषोंके आचरण समान आचरित अपने पुत्रके पवित्र चरित्रके सुननेसे उत्तम पुरुषकी माता प्रसन्न होती है। इस प्रकार पितासे भी माता अधिक मान्य है।
___ "सगे भाइयों का उचित" छोटे भाईका बड़े भाईके प्रति उवितावरण इस प्रकारका है। छोटा भाई अपने बड़े भाईको पिता समान समझे और सब कार्योंमें उसे बहुमान दे। कदाचित सौतिला भाई हो तथापि जिस प्रकार लक्ष्मणजी ने बड़े भाई रामचन्द्र का अनुसरण किया वैसे ही सौतिले बड़े भाईको पूछ कर कार्योंमें प्रवृत्ति करे। इस तरह बड़े भाईका सन्मान रखना।
ऐसे ही औरतोंमें भी समझना चाहिये। जैसे कि देवरानी जेठानीका सासुके समान मान रक्खे याने उसे पूछ कर ही गृह कार्यों में प्रवृत्ति करे।
. भाई भाईमें किसी प्रकारका अन्तर न रक्खे, जो बात करे सो सरलता से यथार्थ करे, यदि ब्यापार करे तो पूछ कर करे तथा जो कुछ धन हो उसे परस्पर एक दूसरेसे छिपा न रक्खे ।
___ व्यापारमें भाईको प्रवृत्ति करानेसे वह उसमें जानकार होता है। पूछ कर करनेसे प्रपंची दुष्ट लोगोंसे या दुष्ट लोगोंकी संगतिसे भी बचाव हो सकता है। किसी बातको छिपा न रखें। इससे द्रोह करके एकला रखनेकी बुद्धिका पोषण होता है । संकट आ पड़े उसका प्रतिकार करनेके लिये प्रथमसे ही निधान भंडार कर रखनेकी जरूरत है, परन्तु परस्पर छिपा कर कदापि न रखना। . ..