________________
३०२
श्राद्ध विधि प्रकरण नौकरों ने जान कर सुबह दीवानको कह सुनाई; इससे दीवानने उन्हें तिरस्कार पूर्वक कहा कि जब तुम एक चारपाई के लिए सारी रात लड़ते रहे तब फिर युद्धके समय संप रख कर किस प्रकार अपने स्वामीका भला कर सकते हो ! नोकरी न मिल कर उन्हें वहाँसे अपमानित हो वापिस लौट जाना पड़ा। इसलिए एक मनुष्यको आगेवान करके कार्य करना उचित और फलदायक है। शास्त्रमें कहा है कि:
बहुनामप्यसाराणां । समुदायो जयावहः ॥
तृणैरावेष्टिता रज्जु ।र्यया नागापि बध्यते ॥ यदि बहुतसे निर्माल्य मनुष्य भी मिल कर काम करें तो उसमें अवश्य लाभ हो होता है जैसे कि, बहुतसे घाँसकी बनाई हुई रस्सीसे मदोन्मत्त हाथी भी बाँधा जा सकता है।
पांच मनुष्योंने मिल कर गुप्त विचार किया हो और वह यदि अन्य किसीके सामने प्रगट किया जाय तो उससे उस कार्यमें अवश्य क्षति पहुंचेगी, बहुतसे मनुष्यों के साथ विरोध हो, राजभय हो, लोगोंमें अपयश वगैरह बहुतसे अवगुणों की प्राप्तिका सम्भव है, इसलिए जितने मनुष्योंने मिल कर वह विचार किया हो उनसे अन्यके समक्ष वह प्रगट न करना चाहिये। राजादिके पास भी मध्यस्थ रहनेसे बहुतसे फायदे होते हैं
और दूसरोंके दूषण प्रगट करनेसे कई प्रकारकी आपत्तियों का सम्भव होता है। व्यापार रोजगार में भी यदि ईर्षा की जाय तो उससे बहुतसे दूषण प्रगट हुए विना नहीं रहते । इसलिये कहा है कि
-एकोदराः पृथकग्रीवा। अन्यान्य फलकांतिणः॥
असंहता विनश्यन्ति । भारण्डा इव पक्षिणः॥ एक उदर वाले, जुदी जुदी गर्दन वाले-जुदे जुदे मुख वाले यदि भारंड पक्षी दोनों मुखसे फल खाने की इच्छा रक्खे तो वह उससे मृत्युको प्राप्त होता है, वैसे ही पारस्परिक विरोधसे या कुसंपसे मनुष्य तुरन्त ही नाशको प्राप्त होता है।
परस्परस्य मर्माणि । ये न रक्षन्ति जन्तवः॥
त एव निधनं यान्ति । वल्पीकोदर सर्पवत् ॥ जो मनुष्य पारस्परिक मर्म गुप्त नहीं रखता और गुप्त रखने योग्य होने पर भी उसे दूसरोंके समक्ष प्रगट करता है वह वल्मिकमें रहने वाले सर्पके समान शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। ...
समुवठिए बिवाए । तुल्ल समाणेहिं चेवायव्वं ॥
कारण। साबिख्खेहि । विहूणे यव्यो न नयमग्गो।। यदि किसी कारण लड़ाई हो जाय तो भी योग्य रीत्यनुसार ही बर्ताव रखना चाहिये, याद काई. ऐसा कारण आ पड़े कि, जिसमें अपने सगे सम्बन्धियों को हरकत आ पड़ती हो या जाति भाइयोंको हरकत आती हो तो रिसवत दे कर या उपकार करके उन्होंका कार्य कर देना। परन्तु दाक्षिण्यता रख कर भी न्यायमार्ग न छोड़ना। न्यायमार्ग में रह कर सबका बचाव करनेके लिये प्रवृत्ति करना योग्य है।
- बलिएहिं दुबलजणो। सुक्ककराइहिं नामिभवि अव्वो॥
-
तए