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प्राविधि प्रकरण वाली स्त्रियोंके लिये यह वाक्य न समझना। यदि कदाचित् स्त्री पतिसे भी चतुरा हो और उसे सदैव अच्छी सीख देती हो तो कार्य करनेमें उसकी सलाह लेनेसे विशेष लाभ होता है जैसे कि वस्तुपाल ने अपनी स्त्री अनुपमादेवी से पूछ कर कितने एक श्रेष्ठ कार्य किये तो उससे वह अधिक लाभ प्राप्त कर सका।
सु कुलगा याहि परिण्य वयाहिं निच्छम धम्म निरयाहिं॥
सयण रसणीहि पीई। पाउण इसमाण धम्महि ॥ . नीच कुलकी स्त्रीका संसर्ग, अपयश रूप होनेसे सदैव वर्जना चाहिये। वैसी नीच कुलकी स्त्रियोंके साथ वातचीत करनेका भी रिवाज न रखना, परन्तु श्रेष्ठ कुलमें उत्पन्न हुई, परिपक्क अवस्था वाली, निष्कपट, धर्मानुरागी, सगे सम्बन्धियों के सम्बन्ध वाली और प्रायः समान धर्मवाली स्त्रियोंके साथ ही अपनी स्त्रीको प्रीति या सहबास करनेका अवकाश देना।
रोगाइ सुनो विख्खई । सुसहायौ होई धम्मकज्जेसु ॥
रामाइ पणयनिगयं । उचिमं पाराण पुरित्तग्स ।। यदि अपनी स्त्रीको कुछ रोगादिक का कारण बन जाय तो उस वक्त उसकी उपेक्षा न करके रोगोपचार करावे और उसे धर्म कार्यमें प्रेरित करता रहे। अर्थात् तप, चारित्र, उजमना, दान देना, देव पूजा करना और तीर्थ यात्रा करना वगैरह कृत्योंमें उसका उत्साह बढ़ाते रहना चाहिये। सत्कृत्योंमें उसे धन खरचने को देना, वगैरह सहाय करना। परन्तु अन्तराय न करना, क्योंकि, स्त्री जो पुण्य कर्म करे उसमेंसे कितना एक पुण्य हिस्सा पतिको भी मिलता है तथा पुण्य कराणियोंमें मुख्यतया स्त्रियां ही अग्रेसर और अधिक होती हैं इस लिये उनके सत्कृत्योंमें सहायक बनना योग्य है। इत्यादि पुरुषका स्त्रियोंके सम्बन्ध में उचितावरण शास्त्रमें कथन किया है।
"पुत्रके प्रति उचिताचरण" पुष्पइ पुणउचितरं । पिउणो लाले वाल भामि ॥
उम्मीलिय वुद्धि गुणं । कलासु कुसुलं कुणइ कमसो॥ पुत्रका उवितावरण यह है कि पिता पुत्रकी वाल्यावस्था में योग्य आहार, सुन्दर देश, काल, उचित विहार विविध प्रकारको क्रीड़ा वगैरह करा कर लालन पालन करे, क्योंकि यदि ऐसे आहार विहार क्रीड़ामें वाल्यावस्था में संकोच किया हो तो उसके शरीरके अवयवों की पुष्टता नहीं हो सकती। तथा जब बुद्धिके गुण प्रगट हों, तब उसे क्रम पूर्वक कला सिखलाने में निपुण करे।
लालयेत्पंच वर्षाणि । दशवर्षाणि ताडयेत् ॥
प्राप्त पोडषपे वर्षे । षुत्रो मित्रमिवाचरेत् ॥ पांच वर्ष तक पुत्रका लालन पालन करे, दस वर्ष वाद, शिक्षा देनेके लिये कथनानुसार न चले तो उसे शुकना और पीटा भी जा सकता है, परन्तु जब सोलह वर्षका हो जाय तबसे पुश्को मित्रके जमाव समना ।