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श्राद्धविधि प्रकरण दो स्त्रियां करनी पड़े तो उन दोनोंका और उन दोनोंके पुत्रादिका मान, सन्मान, तथा वस्त्राभूषण देना वगैरह एक समान करना चाहिये । परन्तु न्यूनाधिक न करना। तथा जिस दिन जिस स्त्रीकी बारी हो उस दिन उसीके पास जाय परन्तु क्रम उलंघन न करे। क्योंकि यदि ऐसा न करे और सदेव नई स्त्रीके पास ही जाया करे तो उस स्त्रीको 'इत्वर पुरुष गमन' नामक दूसरा अतिचार तीसरे ब्रतका भंग लगता है और पुरुषको भी दूसरी स्त्रो भोगनेका अतिचार लगता है, इसलिये ऐसी प्रवृत्ति करना योग्य नहीं। अर्थात् दोनों स्त्रियोंका मान सन्मान सरीखा ही रहना चाहिये। ___यदि स्त्री कुछ भी अघटित कार्य करे तो उसे स्नेह युत उचित शिक्षा दे कि जिससे वह फिरसे वैसे अकार्य में प्रवृत्ति न करे । तथा यदि स्त्रो किसी भी कारण से नाराज होगई हो तो उसे तत्काल ही मना लेना चाहिये क्योंकि यदि नाराज हुई स्त्रीको न मनावे तो उसकी बुद्धि तुच्छ होनेसे सोम भट्टकी स्त्रीके समान कुवेमें पड़ना या जहर खा लेना वगैरह अकस्मात् अनर्थका कारण बन जानेका सम्भव रहता है। इसी लिये स्त्रोके साथ सदैव प्रेम दृष्टि रखना चाहिये। परन्तु उस पर कदापि कठोर दृष्टि न रखना। "पंचालः स्त्रीषु मार्दवं" पंचाल पंडितकी लिखी हुई नीतिमें कहा है कि, स्त्रोके साथ कोमलता रखनेसे ही वह वश होती है, यदि स्त्रीसे कठिन वृत्ति रख्खी हो तो उससे सर्व प्रकारके कार्योकी सिद्धि नहीं हो सकती, इस बातका अनुभव होता है । तथा यदि निर्गुण स्त्री हो तो उसके साथ विशेषतः कोमलतासे काम लेना योग्य है, क्योंकि जीवन पर्यन्त उसीके साथ एक जगह रहकर समय व्यतीत करना है । घरका सर्व निर्वाह एक स्त्री पर ही निर्भर है। गृहं हि गृहिणी विदुः गृहणी ही घर है" इस प्रकारका शास्त्र वाक्य होनेसे स्त्रीके साथ प्रेमका बर्ताव रखना। ___स्त्रीको अपने धनकी हानि न कहना, क्योंकि यदि कही हो तो स्त्रियोंका स्वभाव तुच्छ होनेसे उनके पेटमें बात नहीं टिकती। इससे जहाँ तहाँ बोल देनेके कारण जो अपना बहुत समयका प्राप्त किया यश है सो भी खो बैठनेका भय रहता है । कितनी एक स्त्रियां सहजसी बातमें पतिकी आबरू खुवार कर डालती हैं, इस. लिये स्त्रोके सामने धन हानिकी बात न कहना। एवं धनकी वृद्धि भी उसे न बतलाना, क्योंकि उसे कहनेसे वह फजुल खर्ची करनेमें वे पर्वाह हो जाती है।
स्त्री चाहे जितनी प्रिय हो तथापि उसके पास अपनी मार्मिक बात कदापि प्रगट न करनी, क्योंकि उसका कोमल हृदय होनेके कारण वह किसी भी समय उस गोप्य विचारका गुप्त भेद अपने मानसिक उफान के लिए अपनी विश्वासु सखियोंके पास कहे बिना न रहेगी। जिससे अन्तमें वह अपना और दुसरेका अर्थ विगाड़ डालती है, और यदि कदाचित् कोई राज विरोधी कार्य हो तो उसमें बड़े भारी संकटका मुकाबला करना पड़ता है । इसी लिये शास्त्रकार लिखते हैं कि, “यरमें स्त्रीका चलन न रखना । कदाचित् घरमें उसकी चलती हो तो भले चले परन्तु व्यापारादिक कार्यमें तो उसके साथ कुछ भी मसलत न करना । वैसा न करने से याने उचितानुचित का विचार किये बिना हरएक कार्यमें स्त्रीकी सलाह ले तो वह अवश्य ही पुरुषके समान प्रबल बन जाती है। जब जिसके घरमें उसकी मूखे स्त्रीका चलन हुवा तब समझ लेना कि उसका घर विनाशके सन्मुख है इस बात पर यहां एक दृष्टान्त दिया जाता है।