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श्राद्धविधि प्रकरण एक भी दोषित मालूम नहीं देता। परन्तु इस निर्दोष सुन्दर सेठ पर बारम्बार असत्य दोषका आरोपण करनेवाली यह वृद्धा ही सबसे विशेष मलीनभाव की मालूम होती है। इसलिए मुझे इसीको लगना योग्य है।' यह विचार करके वह हत्या अकस्मात आकर बृद्धा ब्राह्मणी के शरीरमें प्रवेश कर गयी जिससे उसका शरीर काला, कुवड़ा, कुष्टी बन गया।
उपरोक्त दृष्टान्तका सार यह है कि किसीके दोषका निर्णय किये बिना कदापि असत्य दोषका अरोपण करके न घोलना यही विवेकका लक्षण है। असत्य दोष बोलनेसे होने वाली हानि पर उपरोक्त दृष्टान्त बत. लाया है। अब सत्य दोषके विषयमें दूसरा दृष्टान्त दिखलाया जाता है। ___एक कारीगर किसी एक राजाके पास सुन्दर आकार वाली तीन पुतलियां बनाकर लाया। उनका सुन्दर आकार देख कर राजा पूछने लगा कि इनकी क्या कीमत है। कारीगरने कहा 'राजन् ! किसी चतुर पण्डितके पास परीक्षा कराकर आपको जो योग्य मालूम दे सो दें। पण्डितोंको बुला कर राजाने पुतलियों की परिक्षा करानी शुरू की। एक पण्डितने सृतका डोरा लेकर पहिली पुतलीके कानमें डाला परन्तु वह तत्काल ही मुखके आगे रखे हुए छिद्रमेंसे बाहर निकल पड़ा। पण्डित बोले इस पुतलीका मूल्य एक पाई है। क्योंकि इसके कानमें जो पड़ा सो इसने बाहर निकाल डाला। दूसरी पुतलीके एक कानमें दोरा डाला वह तत्काल ही दूसरे कानमें से बाहर निकला। पण्डित बोले, हाँ ! इससे भी यह समझा गया कि इसके कानम जो जो बातें आवें वे एक कानसे सुन कर जैसे दूसरे कानसे निकाल दी जाय याने सुन कर भी भूल जाय। यह दाखला मिलनेसे यह पुतली एक लाख रु०के मूल्यवाली है। फिर तीसरी पुतलीके कानमें भी डोरा डाला वह डोरा तत्काल ही उसके गलेमें उतर गया या पेटमें ही रह गया परन्तु वाहर न निकल सका। इससे पण्डितों मे यह परीक्षा की कि इस पुतलीका दाखला ऐसा लेना योग्य है कि जितना सुने उतना सब कुछ पेटमें ही रक्खे परन्तु बाहर नहीं निकलती। ऐसे गम्भीर -गहरे पेटवाले पुरुष भी बहु मूल्य होते हैं इस लिए इस पुतलीका मूल्य कुछ कहा नहीं जा सकता। राजाने खुशी होकर उन तीनों पुतलियोंको रख कर कारीगर को तुष्टि दान दे विदा किया।
इस दृष्टान्त पर विचार करनेसे मालूम होगा कि किसी भी पुरुषके सत्यदोष बोलनेमें भी मनुष्यकी एक पाईकी कीमत होती है।
"उचिताचारका उलंघन" जो पुरुष सरल स्वभावी हो उसकी किसी भी प्रकारसे हँसी, मस्करी करना; गुणवान पर दोषारोपण करना, गुणवान पर मत्सर-ईर्षा, द्वेष करना, जो अपना उपकारी हो उसके उपकार को भूल जाना, जो बहुतसे मनुष्योंका विरोधी हो उसके साथ सहवास रखना, जो बहुतसे मनुष्योंका मान्य हो उसका अपमान करना, सदाचारी पुरुषों पर कष्ट आ पड़नेसे खुशी होना, भले मनुष्योंके कष्टको दूर करनेकी शक्ति होने पर भी सहाय न करना, देश, कुल, जाति प्रमुखके नियमोंको तोड़ना वगैरह उचित आचारका उलंघन किया