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श्राद्धविधि प्रकरण गिना जाता है या लोकविरुद्ध कहलाता है। इस प्रकारका अनाचार श्रावकोंके लिए सर्वथा परित्याज्य है।
थोड़ी सम्पदावाले को श्रीमन्तके जैसा और श्रीमन्त को दरिद्रीके जैसा वेष रखना, अथवा सदा मलोन ही वेष रखना, फटे टूटे कपड़े पहनना, लोकाचार से विरुद्ध वर्तन करना ऐसे ही कितने एक लोकविरुद्ध कार्योंका परित्याग करना चाहिए। यदि ऐसा न करे तो इस लोकमें मी वह अपयश और अपकीर्तिका कारण बनता है। श्री उमास्वाति वाचक भी अपने किये हुए ग्रन्थमें इस प्रसंग पर यह लिखते हैं कि 'धर्ममार्ग में प्रवर्तने वाले समस्त साधुवोंको धर्मसाधन करनेमें लोक भी सर्व प्रकारसे आधार-सहायक है, इसीलिये लोकाचार विरुद्ध और धर्माचार विरुद्ध इन दोनोंको त्यागना ही योग्य है।'
लोकविरुद्ध कार्य त्यागनेसे लोगोंकी प्रीति होती है, धर्मका सुखपूर्वक निर्वाह होता है, सब लोग प्रशंसा करते हैं, इत्यादि गुणकी प्राप्ति होती है। जिस लिए शास्त्रमें लिखा है कि-'इत्यादिक लोकविरुद्ध के त्याग करनेसे प्राणी सब लोगोंको प्रिय होता है। सब लोगोंका प्रिय होना यह भी मनुष्यको सम्यक्त्व. रूप वृक्षके प्रगट होने में बीजरूप है।'
"धर्मविरुद्ध" मिथ्यात्व कृत्य न करना, निर्दयतया गाय, भैंस, बैलको बांधना, मारना, पीटना, खटमल, जूं आदि को वस्म वगैरह किसीके आधार बिना ही जहाँ तहाँ फेंक देना, चींटी, जू, खटमल को धूपमें डालना, सिर को देखे बिना वैसे ही सिरमें बड़ी कंधी डाल कर बहुत दिनोंके न सुधारे हुए बालोंको बाहना, अथवा लीख वगैरह को उखाड़ डालना, ग्रीष्मऋतु में गृहस्थ को प्रति दिन तीन दफा पानी छानने की रीति जानते हुए भी वैसा न करना, पानी छाननेका कपड़ा फटा हुवा रखना, या गाढ़ा कपड़ा न रखना, या छलना छोटा रखना, या पतला जाली जैसा रखना, या पानी छान कर उसका संस्कार-अवशेष-जहांका जल हो उसे वहाँ न डालना, पानी छानते हुए पानीको उछालना, एक दूसरे कुवे या नदी तालावके पानीको इकट्ठा करना, धान्य, इंधन, शाक, सब्जी, ताम्बूल, पान, भाजी वगैरह बराबर साफ स्वच्छ किये बिना और धोये विना ज्यों त्यों उपयोग में लेना, समूची सुपारी, समूचा फल, छुवारा, बाल, फली चोला-लोव्हिया-वगैरह समचा ही मुहमें डालना, टोंटीसे या ऊंची धार करके दूध, पानी या औषध वगैरह पीना इत्यादि ये सब कुछ धर्मविरुद्ध गिना जाता है।
चलते, बैठते, सोते, स्नान करते, किसी भी वस्तुको लेते या रखते हुए, रांधते हुए, खाते हुए, खोटते हुए, दलने ए, पीसते हुए, औषध वगैरह घोटते हुए, घिसते हुए, पेशाव करते हुए, बड़ी नीति करते, थूकते, हो डालते हुए, श्लेष्म डालते हुए, कुल्ला करते, पानी छानते हुए, इत्यादि कार्य करते हुए यदि जीवकी
.. करे तो वह धर्मविरुद्ध गिना जाता है। धर्मकरणी करते अनादर रखना, धर्म पर बहुमान न रखना, दव, गुरु, साधर्मी पर द्वेष रखना, देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, साधारणद्रव्य, गुरुद्रव्य का परिभोग करना, प्रसिद्ध पापी लोगोंके साथ संसर्ग करना, धर्मिष्ट गुणवान का उपहास करना, अधिक कषाय करना, जिसमें