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श्राद्धविधि प्रकरण
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उसे धन, धर्म और शरीर सम्बन्धी भी सुख कहांसे प्राप्त हो ? तथा जिसे धर्मवर्ग और कामवर्ग इन दोनोंको किनारे रखकर अकेले अर्थवर्ग- -धन कमाई पर अत्यन्त आतुरता होती है उसके धनके भोगनेवाले दूसरे ही लोग होते हैं । जैसे कि सिंह स्वयं मदोन्मत्त हाथीको मारता है परन्तु उसमें वह स्वयं तो हाथीको मारने के पापका ही हिस्सेदार होता है, मांसका उपभोग लेने वाले अन्य ही शृगाल - गीदड़ आदि पशु होते हैं; वैसे ही केवल धन उपार्जन करनेमें गुलथाये हुयेके धन सम्बन्धी सुखके उपभोग लेने वाले पुत्र पौत्रादिक या राजकीय मनुष्य वगैरह अन्य ही होते हैं और वह स्वयं तो केवल पापका ही हिस्सेदार बनता है। अर्थवर्ग और कामवर्ग इन दोनोंको किनारे रख कर एकले धर्मवर्गका सेवन करना यह मात्र साधु सन्तका ही व्यवहार है, परन्तु गृहस्थका व्यवहार नहीं । तथा धर्मवर्ग छोड़ कर एकले अर्थवर्ग और कामवर्ग का भी सेवन करना उचित नहीं । क्योंकि दूसरेका खा जाने वाले जाटके समान अधर्मीको आगामी भवमें कुछ भी सुखकी प्राप्ति होने वाली नहीं । इसलिये सोमनीति में कहा है कि, सचमुच सुखी वही है कि जो आगामी जन्ममें भी सुख प्राप्त करता है । इसलिए संसार भोगते हुए भी धर्मको न छोड़ना चाहिए। एवं अर्थवर्ग को करके मात्र धर्मवर्ग और कामवर्ग सेवन करनेसे सिर पर कर्ज हो जानेके कारण सुखमें और धर्म में त्रुटि आये विना नहीं रहती । कामवर्ग को छोड़ कर यदि अर्थवर्ग और धर्मवर्ग का ही सेवन किया करे तो वह ग्रहस्थकेसांसारिक सुखोंसे वंचित रहता है ।
तथा तादात्विक - ख -खाय मगर कमाये नहीं । मूलहर- - मा बापका कमाया हुवा खा जाय । कदर्यखाय भी नहीं और खर्चे भी नहीं, ऐसे तीन जनोंमें धर्म, अर्थ, और कामका अरस परस विरोध स्वाभाविक ही हो जाता है। जो मनुष्य नवीन धन कमाये बिना ज्यों त्यों खर्च किये जाता है उसे तादात्विक समझना । जो मनुष्य अपने माता, पिता, वगैरहका संचय किया हुवा धन, अन्याय की रीतिसे खर्च कर खाली हो जाता है उसे मूलहर समझना । और जो मनुष्य अपने नौकरों तकको भी दुःख देता है और स्वयं भी अनेक प्रकारके दुःख सहन करके द्रव्य होने पर भी किसी कार्य में नहीं खरबता उसे कदर्य समझना चाहिये । तादात्विक और मूलहर इन दोनोंमें द्रव्य और धर्मका नाश होनेसे उनका किसी भी प्रकार कल्याण नहीं हो सकता ( उन दोनोंका धन धर्म कार्यमें काम नहीं आता ) और जो कदर्य, लोभी है उसके धनका संग्रह राज्यमें, उसके पीछे सगे सम्बन्धी गोत्रियोंमें, जमीनमें या चोर प्रमुखमें रहनेका सम्भव है । परन्तु उसका धन धर्मवर्ग या कामवर्ग सेवन करनेमें उपयोगी नहीं होता। कहा है कि जिसे गोत्रीय ताक कर चाहते हैं, चोर लूट लेते हैं, किसी समय दाव आ जानेसे राजा ले लेता है, जरा सी देर में अग्नि भस्म कर डालती है, पानी बहा लेता है, धरती में निधान रूपसे दबाया हो तो हटसे अधिष्ठायक हर लेते हैं, दुराचारी पुत्र उड़ा देता है ऐसे द्रव्यको धिक्कार हो । शरीरका रक्षण करने वालेको मृत्यु, धनका रक्षण करने वालेको पृथ्वी, यह मेरा पुत्र है, इस धारनासे पुत्र पर अति मोह रखने वालेको दुराचारिणी स्त्री हंसती हैं। चींटियोंका संचय किया हुवा धान्य, मक्खियों का संचय किया हुवा शहत मधु और कृपणकी उपार्जन की हुई लक्ष्मी, ये दूसरोंके ही उपयोग में आते हैं परन्तु उनके उपयोग में नहीं आते। इसी लिए तीन वर्ग में परस्पर विरोध न आने दे कर ही उन्हें प्राप्त करना गृहस्थोंको योग्य है ।
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