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श्राद्धविधि प्रकरण तृप्यन्ते तेन चांडाला । वुक्कसादासयोनयः॥ अन्यायसे उपार्जन किये धनसे जो लोग श्राद्ध करते है उससे चांडाल जातिके, मुक्कस, जातिके दास योनिके देवता तृप्ति पाते हैं परन्तु पितृयोंकी तृप्ति नहीं होती।
दत्तस्वल्पोपि भद्राय । स्यादर्थो न्यायसंगतः॥
अन्यायाचः पुनर्दत्तः । पुष्कलोपि फलोमिझतः॥ न्यायसे उपार्जन किया हुवा धन यदि थोड़ा भी दानमें दिया हो तो वह लाभ कारक हो सकता है, परन्तु अन्यायसे कमाया हुवा धन बहुत भी दान किया जाय तथापि उसका कुछ फल नहीं मिलता।
अन्यायार्जितवित्त न । यो हितं हि समीहते॥
भक्षणात्कालकूटस्य । सोभिवाच्छति जीवितं ॥ अन्यायसे उपार्जन किये धनसे जो मनुष्य अपना हित चाहता है, वह कालकूट नामक विष खाकर जानेकी इच्छा करता है। ___अन्यायसे उपार्जन किये धन द्वारा आजीविका चलाने वाला एक सेठके समान प्रायः अन्यायी ही होता है, क्लेशकारी, अहंकारी, कपटी, पापकी पूर्ति करने में ही अग्रेसरी और पाप बुद्धि ही होता है। उसमें ऐसे अनेक प्रकारके अवगुण प्रत्यक्ष तया मालूम होते हैं ।
"अन्यायोपार्जित वित्तपर एक शेठका दृष्टान्त" मारवाड़के पाली नामक गांवमें काकुआक; और पाताक नामक दो सगे भाई थे। उनमें छोटा धनवान और बड़ा भाई निर्धन होनेसे अपने छोटे भाईके यहां नौकरी करके आजीविका चलाता था। एक समय चातुर्मास के मौसममें रात्रिके वक्त सारा दिन काम करनेसे थक जानेके कारण काकुआक सो गया था। उसे पाताकने आकर, गुस्सेमें कहा कि, अरे भाई ! तेरे किये हुए क्यारे तो पानी पड़नेसे भर कर फूट गये हैं और तु सुखसे सो रहा है। तुझे कुछ इस बातकी चिन्ता है ? उसे वारंबार इस प्रकार उपालम्भ देने लगा, इससे विवारा काकुआक आँखें मसलता हुवा धिक्कार है ऐसी नौकरीको; और धिक्कार है इस मेरे दरिद्री पनको, यदि मैं ऐसा जानता तो इसके पास रहता ही नहीं, परन्तु क्या करू बवनमें बन्ध गया सो बन्ध गया, इस प्रकार बोलता हुवा उठकर हाथमें फावला ले जब वह खेतमें जाकर देखता है तो बहुतसे मजूर लोग क्यारे सुधारने लग रहे हैं, वह उनसे पूछने लगा कि, "अरे! तुम कौन हो ?” उन्होंने कहा-“आपके भाईका काम करने वाले नौकर हैं।” तब काकुआक बोला कि कुवेमें पड़ी इस पाताककी नौकरी, वह ऐसा निर्दय है कि, अपने भाई की भी जिसे शरम नहीं आती,! ऐसो अन्धेरी रातमें मुझे भर निद्रामेंसे उठा कर यहाँ भेजा। मैं तो अब इसकी नौकरीसे कंटाल गया हूं।"
यह सुनकर नौकरोंने कहा कि तुम बलभीपुर नगरमें जाओ। यदि वहांपर तुम रोजगार करोगे तो तुम्हें बहुत लाभ होगा, कुछ दिनो बाद हमारा भी बहीं जानेका इरादा है।" यह बात सुन कर उसकी बल्लभीपुर जाने