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श्राद्धविधि प्रकरण
२५६ कितने एक अपने जातीय सुपरिचित सजनोंके परिवार के साथ निद्रादिक प्रमाद रहित हो कर बड़े प्रयत्नसे जाय और वहाँ वैसी ही सावधानी से व्यापार करे । क्योंकि समुदाय के बीच यदि एक भी भाग्यशाली हो तो उसके भाग्य बलसे दूसरे भी मनुष्यों के विघ्न टल सकते हैं। बहुत दफा ऐसे बनाव बनते हुए भी नजर आते हैं।
"भाग्यशाली के प्रभावका दृष्टान्त" कहीं पर इक्कीस पुरुष मिल कर चातुर्मास के दिनोंमें एक गांवसे दूसरे गांव जा रहे थे। रास्तेमें बरसाद पड़नेके कारण और रात्रि हो जानेसे वे सबके सब एक महादेव के पुराने मन्दिरमें ठहर गये। उस समय उस मन्दिरके दरवाजे के आगे बिजली आ आ कर पीछे चली जाती है; तब सबके सब भयभीत हो कर विचारने लगे कि, सचमुच ही हममें कोई एक जना अभागी है, इसी कारण यह बिजली उस पर पड़ने आती है। परन्तु हममें के अन्य भाग्यशाली के प्रभाव से यह बिजली वापिस चली जाती है। इस वक्त यह विध्न हम सब पर आ पड़ा है। यदि इसे हम दूर न करें तो उस अभागी के कारण हम सबको कष्ट सहन करने पड़ेंगे, इसलिए हममें से एक एक जना बाहर निकल कर इस मन्दिरको प्रदक्षिणा दे आवे जिससे वह अभागी कौन है इस बातकी मालूम पड़ जाय। सबकी एक राय होने पर उनमें से एक एक जना उठ कर मन्दिरकी प्रदक्षिणा दे कर आने लगा। इस प्रकार एक एक करके इक्कीसमें से जब वीस जने बाहर निकल कर प्रदक्षिणा दे आए तब इक्कीसवां मनुष्य बड़ी शीघ्रता से प्रदक्षिणा दे कर वापिस आने लगा उस वक्त एकदम मन्दिर पर बिजली पड़नेसे वे सबके सब जल मरे परन्तु वह इक्कीसवां भाग्यशाली जीवित रहा। इसलिए परदेश जाते हुए सजन समुदाय का साथ करना योग्य है।
परदेश गए बाद भी आय, व्यय, लेना, देना, बारंबार अपने पुत्र, पिता, माता, भाई, मित्र, वगैरह को विदित करते रहना। तथा अस्वस्थ होनेके समय याने बीमारीके समय उन्हें अवश्य ही प्रथमसे समाचार देना चाहिए। यदि ऐसा न करे तो दैवयोग अकस्मात् आयुष्य क्षय होनेके कारण यदि मृत्यु हो जाय तो संपदा होने पर भी माता, पिता, पुत्रादिक के वियोगमें आना मुश्किल होनेसे व्यर्थ ही उन्हें दुखिया बनानेका प्रसंग आ जाय। जब प्रस्थान करना हो तब भी सबको यथायोग्य शिक्षा और सार सम्हालकी सूचना दे कर तथा सबको प्रेम और बहुमान से बुला कर संतुष्ट करके ही गमन करना। इसलिए कहा है कि, "मानने योग्य देव, गुरु, माता, पिता, प्रमुखका अपमान करके, अपनी स्त्रीका तिरस्कार करके, या किसीको मार पीट कर या बालक वगैरह को रुला कर, जीनेकी वांछा रखने बालेको परदेश या पर ग्राम कदापि न जाना चाहिये। ___तथा पासमें आये हुए किसी भी पर्व या महोत्सव को करके ही परदेश या परगांव जाना चाहिये। कहा है कि उत्सव, महोत्सव या तयार हुए सुन्दर भोजनको छोड़ कर, तथा सर्व प्रकारके उत्तम मांगलिक कार्यकी उपेक्षा करके, जन्मका या मृतकका सूतक हो तो उसे उतारे बिना (अपनी स्त्रीको ऋतु आये उस वक्त)