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श्राद्धविधि प्रकरण
२२१ भीखका अन्न खानेवाले के गोड़े गल जाते हैं इसीलिए मुझे दुःख होता है कि, यह बैल यदि सिक्षाके टुकड़े खायगा तो बिचारा आलसु बन जानेसे काम न कर सकेगा। यदि काम नहीं कर सका तो तू भी फिर इसे किस लिए खानेको देगा! इससे अन्तमें यह दुःखी हो कर मर जायगा। इसी कारण मैं भिक्षाके टुकड़े इसके मुंहसे वापिस लेता हूँ। भिक्षान्न खानेसे उपरोक्त अवगुण जरूर आते हैं इस लिए भिक्षान्न न खाना चाहिये। हरिभद्रसूरिने पांचवें अष्टकमें निम्न लिखे मुजब तीन प्रकारकी भिक्षा कही है।
सर्वसंपतकरी चैका । पौरुषघ्नी तथापरा ॥
वृत्तिभिक्षा च तत्वज्ञ। रितिभिक्षा विधोदिता ॥१॥ पहली सर्वसंपत्करी ( सर्व सम्पदाकी करनेवाली), दूसरी पौरुषको नष्ट करनेवाली, तीसरी वृत्तिभिक्षा, इस प्रकार तत्वज्ञ पुरुषोंने तीन प्रकारकी भिक्षा कही हैं।
यतिर्ध्यानादियुक्तो यो। गुर्वाज्ञायां व्यवस्थितः ॥२॥
सदानारंभिणस्तस्य । सर्वसंपत्करी मता ॥ जो जितेन्द्रिय हो, ध्यानयुक्त हो, गुरुकी आज्ञामें रहता हो, सदैव आरंभसे रहित हो, ऐसे पुरुषोंकी भिक्षा सर्व संपत्करी कही है।
प्रव्रज्यां प्रतिपन्नोय । स्तद्विरोधने वर्त्तत्त ॥
असदार भिणस्तस्य । पौरुषघ्नी तु कीर्तिता ॥३॥ प्रथमसे दीक्षा ग्रहण करके फिर उस दीक्षासे विरुद्ध वर्तन करने वाले खराब आरंभ करने वाले (गृहस्थके आवारमें छह कायाका आरंभ करने वाले ) की भिक्षा पुरुषार्थ को नष्ट करने वाली कही है।
धर्मलाघवकृन्मूढो। भिसयोदरपूरणं ॥
करोति दैन्यात्पीनांगः। पौरुषं हन्ति केवलं ॥४॥ जो पुरुष धर्मकी लघुता कराने वाला, मूर्ख, अज्ञानी, शरीरसे पुष्ट होने पर भी दीनतासे भीक मांग कर पेट भरता है ऐसा पुरुष केवल अपने पुरुषाकार-आत्मशक्ति को हनन करने वाला है।
निःस्वान्ध पंगवो ये तु। न शक्ता वै क्रियान्तरे।
भिक्षापटन्ति वृत्त्यर्थं । वृत्ति भिक्षेयमुच्यते ॥५॥ निर्धन, अंधा, पंगु, लूला, लंगड़ा वगैरह जो दूसरे किसी आजीविका चलानेके उपाय करने में असमर्थ हो वह अपना उदर पूर्ण करनेके लिए जो भिक्षा मांगता है उसे वृत्तिभिक्षा कहते हैं।
निर्धन, अन्धे वगैरह को धर्मकी लघुता करानेके अभावसे और अनुकंपाके निमित्त होनेसे उन्हें वृत्ति नामकी भिक्षा अति दुष्ट नहीं है । इसी लिए गृहस्थको भिक्षावृत्ति का त्याग करना चाहिये । धर्मवन्त गृहस्थ को तो सर्वथा त्याग करना चाहिये। जैसे कि, विशेषतः धर्मानुष्ठान की निन्दा न होने देनेके लिए दुर्जन पुरुष सजनका दिखाव करके इच्छित कार्य पूर्ण कर लें और उसके बाद उसका कपट खुला हो जानेसे वह जैसे निन्दा अपवाद के योग्य गिना जाता है वैसे यदि धर्मवन्त हो कर गुप्त भिक्षासे आजीविका चलाये तो